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कैंसर की बीमारी बहुत ही गंभीर है और इसके नाम से कोई भी व्यक्ति डर सकता है। आज इस ब्लॉग के जरिए हम जानेंगे कि इस बीमारी के होने का क्या कारण है, क्या लक्षण है और इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है? आइए कैंसर को विस्तार से समझते हैं।
कैंसर एक ऐसी अवस्था में जिसमें शरीर में मौजूद कोशिकाएं अपने आप अनियंत्रित रूप से बढ़ने लग जाती हैं। ऐसा होने के कारण वह शरीर के अन्य अंगों पर हमला करना शुरू कर देती हैं। वैसे तो कैंसर को शुरुआत में पहचान पाना मुश्किल होता है, लेकिन कुछ समय के बाद लक्षण नज़र आने लग जाते हैं। मगर तब तक यह बीमारी अक्सर अपना गंभीर रूप ले चुकी होती है।
शरीर में कैंसर की शुरुआत तब होती है जब कोशिकाओं के डीएनए में किसी तरह का बदलाव आने लग जाता है। इस बदलाव की वजह का कारण कुछ भी हो सकता है- धूम्रपान, रेडिएशन, शराब, आनुवंशिक या किसी भी तरह का विषैले पदार्थों का सेवन करना आदि। आमतौर पर ऐसे कारणों की वजह से शरीर क्षतिग्रस्त टिशू को खत्म कर देता है, लेकिन जब यह प्रक्रिया किसी भी कारण बाधित हो जाती है तब यह टिशू तेजी से बढ़ने लग जाते हैं और धीरे-धीरे करते हुए यह कैंसर का रूप ले लेते हैं।
कैंसर फैलने के कई कारण हो सकते हैं और वह क्या है? आइए समझते हैं विस्तार से कैंसर फैलने वाले कारकों के बारे में-
कैंसर का फैलना यह तय करता है कि उसका प्रकार क्या है? कैंसर के कई प्रकार होते हैं लेकिन सबसे तेजी से फैलने वाले कैंसर में शामिल है- लिवर का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर और अग्नाशय का कैंसर। यह तीनों प्रकार के कैंसर शरीर में बहुत ही तेजी से फैलते हैं साथ ही कुछ ही महीनों में एक गंभीर स्थिति तक पहुंच जाते हैं।अगर बात धीरे-धीरे फैलने वाले कैंसर की जाए, तो उसमें शामिल है- प्रोस्टेट का कैंसर, त्वचा से जुड़े हुए कुछ कैंसर और थायरॉइड कैंसरआदि। यह बहुत ही धीरे-धीरे फैलते हैं और कई वर्षों तक सीमित भी रह सकते हैं।
कैंसर का फैलना कैंसर की स्टेज भी तय करती है।
चरण 1 - पहले चरण में कैंसर सिर्फ उस अंग तक ही सीमित रहता है जहां से वह शुरू हुआ था।
चरण 2 और चरण 3 - इन दोनों चरणों में कैंसर अपनी आस-पास के ऊतकों (टिशू) और लिम्फ नोड्स तक फैलने लग जाता है।
चरण 4 - आखिरी चरण में कैंसर पूरे शरीर में फैल चुका होता है, जिसे मेटास्टेटिक कैंसर भी कहते हैं।
वैसे बुजुर्गों में कैंसर धीरे-धीरे फैल सकता है लेकिन वहीं युवाओं में तेजी से फैल सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी कोशिकाएं ज्यादा ही सक्रिय रूप से काम करती है। अगर किसी भी व्यक्ति का कमजोर इम्यून सिस्टम है तो उनके शरीर में भी कैंसर तेजी से फैल सकता है।
कैंसर की समस्या अगर परिवार में पहले से ही मौजूद है तो आनुवंशिक रूप से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में कैंसर का तेजी से शरीर में फैलना एक आम कारण हो सकता है।
कैंसर के फैलने का कोई समय तय नहीं होता है। यह कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक के वक़्त में शरीर में आराम से फैल सकता है। वैसे कैंसर का फैलना उसके प्रकार, मरीज के इम्यून सिस्टम और उपचार पर निर्भर करता है।
लिवर का कैंसर मरीज के शरीर में कुछ ही महीनों में फैलता हुआ स्टेज 4 तक पहुंच सकता है।
फेफड़ों में मौजूद कैंसर 6 से 12 महीनों में फैल जाता है। यह मेटास्टेसिस (Metastasis) की स्थिति तक पहुंच सकता है। आमतौर पर फेफड़ों का कैंसर बहुत तेजी से शरीर में फैल जाता है।
अग्नाशय का कैंसर बहुत ही घातक माना जाता है और यह कुछ ही समय यानि कुछ महीनों में शरीर के विभिन्न अन्य अंगों तक फैल जाता है।
प्रोस्टेट का कैंसर मरीज के शरीर में 10 से 15 सालों तक सीमित रह सकता है। यह ज्यादातर वृद्ध पुरुषों में देखा गया है।
थायरॉइड कैंसर भी शरीर में धीरे-धीरे ही फैलता है। आप इसका उपचार करवा रहे हैं तो इसको नियंत्रित भी किया जा सकता है।
स्किन कैंसर सालों तक सीमित रह सकता है। मगर, सही समय पर इलाज नहीं करवाया गया तो, यह शरीर के बाकि अन्य हिस्सों में फैल सकता है।
शरीर में जब कैंसर फैलने लग जाता है तो वह कुछ संकेतों के जरिए आपको यह बताता है कि आपके शरीर में कोई समस्या पैदा हो रही है। ऐसे में कैंसर भी अपने कुछ लक्षण दिखाता है जैसे कि-
अचानक से वजन कम होना
शरीर के कई हिस्सों में दर्द रहना
बुखार और पसीना बना रहना
कमजोरी
थकावट रहना
त्वचा में गांठ बनाना
त्वचा के रंग में बदलाव
कब्ज की समस्या होना
दस्त
पाचन से जुड़ी भिन्न समस्या होना
जोड़ों में दर्द
कैंसर होने के कई कारण हो सकते हैं, खासकर वह पदार्थ जिनको कोर्सिनोजन कहा जाता है। कैंसर के होने वाले कारणों को समझते हैं -
कैंसर होने का मुख्य कारक तंबाकू या उससे बनने वाली चीज़े है। सिगरेट, या गुटखा इसमें शामिल है, जो लंबे समय तक सेवन करने से फेंफड़े या मुंह के कैंसर का कारण बनते है।
कोई भी व्यक्ति अगर लंबे समय से शराब का सेवन कर रहा है, तो उसका लिवर खराब हो सकता है और उसकी वजह से कैंसर हो सकता है। शराब का सेवन करने से शरीर के अन्य कई हिस्सों में कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
अगर परिवार में किसी का भी कैंसर का इतिहास रह चुका है, तो कैंसर की बीमारी के होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
कुछ ऐसे वायरस है जो कैंसर के लिए जिम्मेदार होते हैं। उन वायरस में शामिल है हेपेटाइटिस बी और सी, जो 50% तक लिवर कैंसर के लिए जिम्मेदार होते हैं।
अगर आप बार-बार एक्स-रे करवा रहे हैं, तो उसकी रेडिएशन के संपर्क में आने के कारण भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
कैंसर का इलाज संभव है लेकिन यह तय तभी किया जा सकता है कि वह कौन-सा और कौन-से चरण का कैंसर है। अगर कैंसर को शुरू में ही पकड़ लिया जाए तो उसकी रोकथाम आसान हो जाती है। कैंसर के इलाज के लिए सर्जरी, कीमोथेरेपी, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, नॉन-सर्जरी, हार्मोन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी आदि शामिल है। आइए अब इनको विस्तार से समझते हैं-
कैंसर के इलाज में जब सर्जरी को चुना जाता है तब कोशिकाओं के असाधारण रूप से बढ़ने वाले हिस्सों को निकाल दिया जाता है। जब ट्यूमर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है तब बायोप्सी तकनीक का सहारा लेते हुए कैंसर को बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन कैंसर दूसरे हिस्सो में नहीं फैला होता है तो सर्जरी उसके लिए बेस्ट विकल्प है।
रेडिएशन थेरेपी नॉन सर्जिकल प्रक्रिया है। जिसमें कैंसर कोशिकाओं पर सीधा असर पड़ता है, इस प्रक्रिया में गामा रेडिएशन की मदद से असामान्य रूप से बढ़ रही सभी कोशिकाओं को खत्म कर दिया जाता है।
कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी होती है और इसके बारे में लगभग सभी लोगों ने सुना भी होगा। कीमोथेरेपी कई चरणों में की जाती है और इसमें विशेष प्रकार के ड्रग्स, दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।। इनके जरिए बढ़ रही कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जाता है।
इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए इम्यूनोथेरेपी (immunotherapy) का इस्तेमाल किया जाता है। यह कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम को प्रबल बनाती है।
जब कैंसर हार्मोन से प्रभावित हो तब हार्मोन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। हार्मोन थेरेपी की मदद से प्रोस्टेट कैंसर और स्तन कैंसर में काफी सुधार देखा गया है।
कैंसर एक गंभीर बीमारी है और इसका पता लगाने के लिए कई प्रकार के परीक्षण होते हैं। उन टेस्ट में शामिल है इमेजिंग टेस्ट, ब्लड टेस्ट, बायोप्सी और स्क्रीनिंग टेस्ट।
इस टेस्ट का इस्तेमाल ट्यूमर की स्थिति, साइज़ और आकार को देखने के लिए करते हैं। इस टेस्ट की मदद से यह भी पता लगाया जा सकता है कि ट्यूमर के आसपास के टिशू या अंगों में कैंसर फैला है या नहीं। इमेजिंग टेस्ट में सीटी स्कैन, एमआरआई, पीईटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड मौजूद होते हैं।
ब्लड टेस्ट बहुत-सी बीमारियों की पहचान करने के लिए किए जाता है। मगर, कैंसर के लिए होने वाले ब्लड टेस्ट में ट्यूमर मार्कर्स के स्तर का पता लगाने के लिए होता है, जो कि ट्यूमर से निकलने वाले प्रोटीन होता है। ब्लड टेस्ट से यह भी पता चलता है कि क्या मरीज के शरीर में कोई और असामान्य कोशिकाएं या प्रोटीन तो नहीं हैं जो कैंसर से जुड़ी हो सकती हैं। सरल भाषा में ब्लड टेस्ट की मदद से ट्यूमर मार्कर्स और अन्य असामान्यताओं की जांच की जाती है।
ट्यूमर के एक छोटे से नमूने को हटाकर और उसकी जांच करके कैंसर का पता लगाने वाली प्रक्रिया को बायोप्सी कहते हैं। बायोप्सी की मदद से यह भी पता चलता है कि ट्यूमर कैंसरयुक्त है या नहीं। बायोप्सी यह भी बताती है कि कैंसर कितना आक्रामक है। इसको करने के लिए कैंसर वाले टिशू के एक छोटे से नमूने को हटाकर, उसकी जांच करके कैंसर का पता लगाया जाता है।
जब लक्षणों के होने से पहले कैंसर का पता लगाना हो तब स्क्रीनिंग टेस्ट की मदद ली जाती है। स्क्रीनिंग टेस्ट में शरीर के किसी विशेष अंग या हिस्से की जांच की जाती है। जैसे कि स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए मैमोग्राम की जाती है और सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए पापेस्टिक परीक्षण किया जाता है।
कैंसर एक गंभीर बीमारी है और समय से पता लग जाए तो आप इसका इलाज शुरू किया जा सकता है और इससे होने वाली जटिलताओं को कम और रोका जा सकता है।