जब आप किसी व्यक्ति को चोट लगती है या फिर घायल हो जाता है, तो शरीर ब्लड फ्लो को रोकने के लिए चोट के स्थान पर स्वाभाविक रूप से और स्वतः ही ब्लड को जमाने लग जाता है। डी-डाइमर टेस्ट एक तरह का ब्लड टेस्ट है जो शरीर में ब्लड क्लॉट के टूटने पर बनने वाले एक प्रोटीन, डी-डाइमर के लेवल के बारे में पता लगाने में मदद करता है। यह टेस्ट ब्लड क्लॉट की जमने की समस्या संभावना का पता लगाने में भी काफी मददगार है, लेकिन यह टेस्ट नहीं बताता कि क्लॉट कहाँ है या किस प्रकार का क्लॉट है।
रक्त में डी-डाइमर प्रोटीन का उच्च स्तर नसों में थक्के का संकेत देता है, जैसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस (पैर में रक्त का थक्का), पल्मोनरी एम्बोलिज्म (फेफड़ों में रक्त का थक्का) आदि। ऐसी परिस्थितियों में पहले से कोई लक्षण नज़र नहीं आते हैं लेकिन यह जानलेवा हो सकती हैं।
डी-डाइमर टेस्ट के ज़रिए थ्रोम्बस (रक्त का थक्का) के अंतिम परिणाम को रोका और पता लगाया जा सकता है। इस ब्लॉग के माध्यम से, हम डी-डाइमर टेस्ट और इसकी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे, जिससे आप डी डिमर टेस्ट के बारे में जान पायें।
ब्लड में मौजूद एक प्रोटीन है जो ब्लड के थक्के के डिसइंटीग्रशन यानी टूटने पर परिणामस्वरूप बनता है जिसको डी-डिमर कहा जाता है। डी-डिमर का कोई फुल फॉर्म मौजूद नहीं है। खून का थक्का जमना एक आवश्यक घाव भरने की प्रक्रिया होती है जो कि चोट लगने के बाद शरीर में स्वाभाविक रूप से अपने आप से होती है। चोट लगने के बाद ब्लड क्लॉट बनने से संक्रमण, रक्तस्राव और अत्यधिक रक्त हानि का खतरा कम हो सकता है।
चोट लगने के बाद जब रक्तस्राव रुक जाता है, तो थक्का छोटे-छोटे पदार्थों में टूटने लग जाता है। इनमें से एक डी-डाइमर प्रोटीन भोई होता है। जिन लोगों को ब्लड क्लॉट जमने की समस्या होती है या जिनकी नसों या धमनियों में थ्रोम्बोसिस (थक्के) हो गए है, उनमें डी-डाइमर प्रोटीन का स्तर अधिक होता है, जो कि भविष्य में किसी गंभीर स्थिति की संभावना का संकेत हो सकता है।
डी-डाइमर परीक्षण एक मात्रात्मक विश्लेषण है जो खंडित डी-डाइमर प्रोटीन के स्तर का पता लगाने में मदद करता है। इसलिए, इसे खंडित डी-डाइमर परीक्षण या फाइब्रिन क्षरण खंड परीक्षण भी कहा जाता है।
कुछ बीमारियों या लक्षणों के कारण कुछ ऐसी स्थितियों की उपस्थिति पैदा हो जाती है कि कुछ टेस्ट द्वारा मदद मिलती है। जबकि अन्य टेस्ट किसी भी स्थिति को कारण के रूप में खारिज कर देते हैं, डी-डाइमर टेस्ट दोनों तरह से फायदेमंद हो सकता है। डी-डिमर टेस्ट ब्लड क्लॉट की स्थिति की पहचान करने के लिए होता है:-
एक तरह का इम्यून डिसऑर्डर हहै जिसका नाम है एंटीफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम(Antiphospholipid syndrome)
हीमोफीलिया एक तरह का आनुवंशिक ब्लड क्लॉट की बीमारी है
घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी
घुटने की चोट के बाद ब्लड क्लॉट होना
गर्भावस्था के समय या प्रसव के बाद
कुछ कैंसर के मामलों में
डी-डिमर कुछ स्थितियों की संभावनाओं को खारिज करने में भी मदद कर सकता है:-
नस के अंदर गहरे ब्लड क्लॉट अक्सर पर के निचले पैरों और शरीर के अन्य हिस्सों पर असर डाल सकते हैं।
फेफड़ों में धमनी अवरोध तब होता है जब शरीर के किसी अन्य क्षेत्र में ब्लड क्लॉट टूटकर फेफड़ों में धमनी अवरोध पैदा करने लग जाए। डीवीटी की वजह से बनने वाले थक्के आमतौर पर पीई का कारण बन सकते हैं।
डीआईसी दर्दनाक चोटों, कुछ प्रकार के संक्रमणों या कैंसर की वजह भी हो सकती है, जब शरीर में कई असामान्य ब्लड क्लॉट बन जाते हैं।
जब मस्तिष्क की खून की आपूर्ति अवरुद्ध या बाधित हो जाती है तब यह स्ट्रोक की स्थिति बनती है।
डी-डिमर टेस्ट के ज़रिए ब्लड में डी-डिमर प्रोटीन के लेवल के बारे में पता लगाया जाता है. यह एक नियमित ब्लड टेस्ट ही है, जिसमें:-
एक प्रोफेशनल हैल्थकार ही यह टेस्ट करने योग्य है. सबसे पहले बाँह की नस से एक निश्चित मात्रा में खून निकालने के लिए एक सुई डाली जताई है।
फिर निकाले गए हुए खून को टेस्ट ट्यूब में कलेक्ट कर लिया जाता है और आगे लेबोरेटरी में जाँच के लिए भेज दिया जाता है।
खून निकालने की प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति को चुभन या दर्द महसूस हो सकता है कई बार थोड़ी-सी असुविधा भी महसूस हो सकती है।
खून निकालने की डी-डिमर जांच प्रक्रिया केवल पांच मिनट के अंदर ही हो जाती है।
अगर डी-डाइमर टेस्ट करवाना चाहते हैं या करवा चुके हैं, तो आप परिणामों की तुलना नार्मल डी-डाइमर रेंज से कर सकते हैं। नार्मल डी-डाइमर संदर्भ रेंज <250 ng/ml, या <0.5 mcg/ml होती है। डी-डाइमर टेस्ट के दो परिणाम हो सकते हैं।
आपके रक्त में डी-डाइमर स्तर कम या सामान्य होने का अर्थ है कि आपके शरीर में थक्के बनने या रक्त का थक्का जमने संबंधी विकार होने की संभावना कम है।
सामान्य से अधिक डी-डाइमर स्तर दिखाने वाले परिणाम संभावित थक्के विकार का संकेत हो सकते हैं।
खून में उच्च डी-डिमर ,गर्भावस्था, दिल से जुड़ी बीमारियाँ या हाल ही में हुई सर्जरी की वजह से भी हो सकती है। सामान्य डी-डाइमर टेस्ट परिणाम की स्थिति में, आपके स्वास्थ्य प्रदाता को निदान के लिए आगे के परीक्षणों का आदेश देने की आवश्यकता हो सकती है।
डी-डाइमर परीक्षण एक सटीक टेस् है, लेकिन यह पूरी तरह सटीक नहीं है, इसलिए निदान की पुष्टि के लिए कुछ अन्य परीक्षण भी किए जाते हैं। डी-डाइमर के साथ किए जाने वाले अन्य परीक्षणों में पीटी, पीटीटी, फाइब्रिनोजेन परीक्षण और प्लेटलेट काउंट जैसे टेस्ट शामिल हैं। जिन लोगों में डी-डाइमर का स्तर अधिक होता है, उनमें थक्का (थ्रोम्बस) बनने या डीवीटी का जोखिम सामान्य या कभी-कभी बढ़ भी जाता है।
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