वेस्टर्न ब्लॉटिंग टेस्ट (WESTERN BLOT test in hindi) एक विशेष तरह का आवश्यक टेस्ट है, जो सेल और मॉलिक्युलर बायोलॉजी में इस्तेमाल किया जाता है। यह टेस्ट सेल में मौजूद एक स्पेशल तरह के प्रोटीन की पहचान करता है साथ ही उसे अलग करने में भी मदद करता है। इस प्रोटीन के प्रकार और मॉलिक्युलर वजन की जांच द्वारा करके किया जाता है। जब एक बार सेल से प्रोटीन को अलग कर दिया जाता है तब उसके बाद फिर प्रोटीन को झिल्ली में भेज दिया जाता है। वह उन्हें उन एंटीबॉडीज के साथ जोड़ा देते हैं जो कि खासतौर से प्रोटीन के होते हैं। जब एंटीबॉडीज प्रोटीन के साथ अपनी प्रतिक्रिया करते हैं तो झिल्ली पर कई सारे बैंड बनने लग जाते हैं, जो कि इस विशेष प्रोटीन की मौजूदगी का संकेत देने का कार्य करते हैं। बैंड की मोटाई लिए हुए सैंपल में मौजूद प्रोटीन की मात्रा पर निर्भर होती है।
पहले यह टेस्ट अलग-अलग सूक्ष्मजीवी रोगजनकों (माइक्रोबियल पैथोजन (Microbial Pathogen) का पता लगाने के लिए एंजाइम लिंक्ड इम्युनोसोरबेन्ट (enzyme linked immunosorbent) ऐसे (एलिसा) के साथ एक अतिरिक्त प्रक्रिया के रूप में किया जाता था। वैसे तो, मेडिकल तकनीक में विकास ने इसे अप्रचलित (obsolete) बना दिया है। बीमारियों पर कण्ट्रोल रखने वाले केंद्रों में अब इस टेस्ट को पूरी तरह से बंद किया जा रहा है।
वेस्टर्न ब्लॉट परीक्षण का उपयोग उन स्थितियों के निदान के लिए किया जाता है जिनमें प्रतिरक्षा प्रणाली की खराबी शामिल होती है। इन स्थितियों में एचआईवी, एड्स और लाइम डिजीज आदि जैसी समस्या शामिल हैं। यह एक सामान्य प्रक्रिया होती है जो गर्भावस्था के समय की जाती है। जिन लोगो को एचआईवी संक्रमण होता है, उन्हें भी यह टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। जिन लोगों को एचआईवी जैसी समस्या होने का अधिक खतरा होता है, उसमें निम्न आदते शामिल होती हैं:
जो लोग असुरक्षित शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं या बनाते हैं
जिनकेलोगों के पार्टनर एचआईवी पॉजिटिव होते हैं
वह लोग जिनको खून चढ़ रहा हो
ऐसे लोग जिनको यौन संचारित बीमारी हो
वह लोग जिनके कई सेक्सुअल पार्टनर होते हैं
वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के लिए किसी भी तरह की कोई कहस तैयारी करने की ज़रूरत नहीं है। इस तेत्स को करने से फेले डॉक्टर मरीज को सारी प्रक्रिया के बारे में समझाते हैं साथ ही कारण के बारे में भी पूर्ण रूप से जानकारी दी जाती है। जिससे व्यक्ति को पता हो कि यह टेस्ट किस लिए किया जा रहा है और इसकी क्या प्रकिया रहेगी। वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के लिए मरीज को बाकी अन्य टेस्ट की तरह उपवास रखने की कोई ज़रुरत नहीं है। अगर किसी भी कारण मरीज को घबराहट महसूस होती है तो साथ में अपने किसी प्रियजन को लेकर जा सकते हैं।
वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के लिए एक विशेष प्रकार की सुई का इस्तेमाल होता है जिससे ब्लड सैंपल कलेक्ट किया जाता है। डॉक्टर मरीज के हाथ हो सही तरह से देखते हैं जिससे वह नस को ढूंढ सकें जिससे वह ब्लड सैंपल आसानी से ले सके। फिर वह बांह पर टूनिकेट बांधा देते हैं और इंजेक्शन लगने वाली जगह को एक एंटीसेप्टिक दवाई से अच्छी तरह से साफ कर देता हैं। फिर जिस ट्यूब में ब्लड सैंपल लिया जाना है, उस पर लेबल लगाकर रख दिया जाएगा। फिर सुई लगाकार ट्यूब में ब्लड सैंपल कलेक्ट कर लिया जाता है। फिर उन ट्यूब को एक बैग में रखकर, जाँच के लिए आगे लैब में भेज दिया जाता है। टेस्ट के बाद डॉक्टर, सुई लगाई हुई पर हल्का सा दबाव लगाने के लिए कहते हैं जिससे संक्रमण से बचाव हो साथ ही खून को रोकने के लिए उस पर बैंडेज लगाई जाती है।
अगर एलिसा टेस्ट के सकरात्मक आने के बाद भी वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के रिजल्ट नकरात्मक आते हैं, तो टेस्ट तीन से छह महीनों में फिर से करवाए जाते हैं। ऐसे मामलों में, एचआईवी संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है। लेकिन कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति को संक्रमण हो तो जाता है, लेकिन टेस्ट के परिणाम में पता लगने योग्य कुछ भी नहीं आता है। इस स्थिति या इस समय के दौरान वायरस को शरीर में जाने से बचाने के लिए व्यक्ति को पर्याप्त सही सुरक्षा बरतनी की ज़रुरत होती है। अगर रिजल्ट नकरात्मक आते हैं तो व्यक्ति को एचआईवी का संक्रमण नहीं हुआ होता है और टेस्ट करवाने की भी कोई जरूरत नहीं रहती है।
अगर टेस्ट का सकरात्मक रिजल्ट है तो इसको असामान्य मान लिया जाता है क्योंकि वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के जब सकरात्मक परिणाम होते हैं, तब इस बात की पुष्टि की जाते हैं कि व्यक्ति के शरीर में वायरल की प्रतिक्रिया हुई है। यह रिजल्ट एचआईवी एंटीबॉडीज के बारे में भी जानकारी देते हैं साथ उसकी मौजूदगी की भी पुष्टि करते हैं। अगर एचआईवी का इलाज समय से और जल्दी शुरू कर दिया जाए तो यह अधिक असरदार साबित होता है और इस के साइड इफेक्ट भी कम होते हैं। नवजात शिशुओं में अगर एचआईवी का टेस्ट मुश्किल है क्योंकि मां के शरीर से गए एंटीबॉडीज बच्चे में अठारह महीनों तक रहते हैं।
अगर सकरात्मक रिजल्ट आते हैं तो कुछ निम्न कदम उठाने की ज़रुरत है:-
जितनी जल्दी हो सकें उतनी जल्दी डॉक्टर की मिलकर, स्थिति की पूरी जानकारी दे। फिर डॉक्टर द्वारा बताए गए सभी टेस्ट करवाए और उन्की बताई हुई सभी सलाह को ध्यान से सुने और पालन करें।
इलाज का एक प्लान बनाया जाएगा, जिसमे निम्न को चीज़े शामिल हो सकती है:-
एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (antiretroviral therapy)
उन विशेष इलाज की जानकारी जो आगे होने वाले है
लोकल सपोर्ट ग्रुप की जानकारी प्राप्त लें
संक्रमण और वायरस के स्थानांतरण को रोकने के बारे में सलाह
सारी रिपोर्ट्स को गुप्त ही रखते हैं और कुछ मामलों में गुमनाम भी रखा जाता है।
अगर रिजल्ट सकरात्मक आते हैं तो यह जरूरी है कि आप अपने पार्टनर इस के बारे में बता करें क्योंकि उनका टेस्ट भी करवाना ज़रूरी हो जाता है।
जिन लोगों की आय कम होती है या कम है, उनके लिए एचआईवी संक्रमण का इलाज करवाने के लिए वित्तीय सहायता (Financial Aid) तक मौजूद है।
कुछ बीमा कंपनियों और सरकार द्वारा चलाए गए प्रोग्राम ऐसे मामलों में भी जरुरतमंदो को मदद करती है।
टेस्ट के परिणाम और व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर ही डॉक्टर उचित निदान कर सकते हैं। उपरोक्त जानकारी शैक्षिक दृष्टिकोण से साझा की गई है और यह किसी भी तरह से डॉक्टर की चिकित्सीय सलाह का कोई विकल्प नहीं है। किसी भी तरह के लक्षण दिखाई देने पर अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें।
मेडिकल डिस्क्लेमर - निम्नलिखित जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए ही है। इस वेबसाइट पर दी गई कोई भी जानकारी, जिसमें टेक्स्ट, ग्राफ़िक और चित्र शामिल हैं, वह पेशेवर चिकित्सा सलाह के विकल्प के रूप में नहीं है। कृपया अपनी स्थिति से संबंधित विशिष्ट चिकित्सा सलाह के बारे में जानने और समझने के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें।