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डायबिटीज आज के समय में बहुत आम तौर पर दिखाई देने लगी है। एक समय था यह समस्या बड़ों-बुजुर्गों में देखने को मिलती थी लेकिन बदलते लाइफस्टाइल के कारण यह समस्या अब नौजवानों में भी नज़र आने लगी है। आज इस ब्लॉग के जरिए जानते हैं डायबिटीज के बारे में विस्तार से और इसके कितने प्रकार है और आप कैसे इससे बच सकते हैं।
डायबिटीज को लोग मधुमेह या शुगर भी कहते हैं। यह एक ऐसी मेटाबॉलिक स्थिति है जहां ब्लड शुगर में ग्लूकोज़ बढ़ जाता है। यह स्थिति तब होती है जब शरीर में पर्याप्त इंसुलिन उत्पादन करने में असफल होता है। यह इंसुलिन एक हार्मोन है जो अग्नाशय (pancreas) में पैदा होता है। यह हमारे शरीर में ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। साथ ही कोशिकाओं में ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलने में भी सहयोग करता हैं। जब यह प्रक्रिया हमारे शरीर में सही से काम नहीं कर पाती है तब ग्लूकोज रक्त में जमा होने लग जाता हैं। इस कारण से शरीर में कई तरह की परेशानियाँ दिखाई दें सकती है।
डायबिटीज के तीन के प्रकार होते हैं टाइप 1, टाइप 2 और गर्भकालीन डायबिटीज। यह एक दूसरे से कैसे अलग है आइए जानते हैं :
डायबिटीज का यह सबसे आम यानि कॉमन टाइप है। टाइप 1 डायबिटीज को ऑटोइम्यून डायबिटीज (Autoimmune Destruction) भी कहते हैं। इस अवस्था में इम्यून सिस्टम जाने अनजाने में पैंक्रियास (pancreas) के अंदर इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं पर हमला करने लग जाता है, जिससे वह नष्ट होने लगती है। यही कारण है कि शरीर में सही से इन्सुलिन नहीं बन पाता और बॉडी का मेटाबोलिज्म सही नहीं हो पाता है।
डायबिटीज के टाइप को इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin Resistance) के नाम से परिभाषित किया जाता है। इस स्थिति में शरीर में इन्सुलिन पैदा तो होता है लेकिन शरीर उसे सही से इस्तेमाल नहीं कर पाता है या यह भी कह सकते हैं कि कोशिकाएं इंसुलिन के सामने सही से अपनी प्रतिक्रिया नहीं कर पाती है। अग्नाशय (pancreas) शरीर में ब्लड शुगर का लेवल बढ़ाने लग जाता है। इस वजह से शरीर में मोटापा, फिजिकल एक्टिविटी करने में दिक्कत आने लगती है। गलत लाइफस्टाइल और डाइट भी इसका एक कारण हो सकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान अक्सर हर महिला के अंदर हार्मोनल बदलाव होते हैं इसलिए इसे गर्भकालीन डायबिटीज (Hormonal Changes) से परिभाषित किया जाता है। इस हार्मोनल बदलाव के कारण महिला का शरीर इंसुलिन के प्रति कम प्रतिक्रिया करता है। वैसे तो यह स्थिति बच्चे के जन्म बाद ठीक हो जाती है, मगर आने वाले समय में यही कारण डायबिटीज टाइप 2 के होने के खतरे को बढ़ा देता है।
हर डायबिटीज के प्रकार के हिसाब से उनके लक्षण भिन्न हो सकते हैं इसलिए डायबिटीज के लक्षण उनके प्रकार के हिसाब से समझते हैं:
शरीर में अचानक से वजन कम होना या दुर्बलता महसूस करना एक बड़ा लक्षण है।
अगर व्यक्ति को बार-बार प्यास लग रही है तो यह भी टाइप 1 डायबिटीज का लक्षण हो सकता है।
अगर व्यक्ति को बार-बार पेशाब के लिए जाना पड़ रहा है तो यह भी टाइप 1 डायबिटीज का लक्षण हो सकता है।
अगर व्यक्ति को खाने की इच्छा नहीं हो रही है या भूख कम लग रही है तो यह भी टाइप 1 डायबिटीज के लक्षणों में गिना जाता है।
हर समय थकान महसूस करना या फिर असमंजस रहना भी टाइप 1 डायबिटीज का लक्षण हो सकता है।
टाइप 1 डायबिटीज में कई बार व्यक्ति को उल्टी या उल्टी का एहसास होता रहता है।
टाइप 2 डायबिटीज में व्यक्ति की भूख बढ़ जाती है या फिर उसे अधिक खाने की इच्छा होती है।
टाइप 2 डायबिटीज में भी व्यक्ति का वजन अचानक से ही कम होने लग जाता है।
टाइप 2 डायबिटीज में बार-बार पेशाब आने की समस्या तो रहती है लेकिन यह समस्या खासकर रात के समय ज्यादा होने लगती है।
टाइप 2 डायबिटीज में व्यक्ति थकावट या कमजोरी महसूस करता है।
टाइप 2 डायबिटीज में व्यक्ति को चक्कर, दृश्य में धुंधलापन जैसा महसूस होता है।
डायबिटीज के इस प्रकार में बार-बार प्यास लगना एक आम लक्षण है।
रात के समय में बार-बार पेशाब आना गेस्टेशनल डायबिटीज का लक्षण है।
थकान और असमंजस महसूस होना भी गेस्टेशनल डायबिटीज का लक्षण हो सकता है।
गेस्टेशनल डायबिटीज में महिला का अनावश्यक वजन बढ़ना एक आम लक्षण हो सकता है।
गेस्टेशनल डायबिटीज के कारण महिला में बार-बार मस्तिष्कीय दौरे और चक्कर आने को एक नाम लक्षण के तौर पर देखा गया है।
डायबिटीज होने के बहुत से कारण नहीं है यह सिर्फ दो कारणों की वजह से किसी व्यक्ति को हो सकता है। आइए जानते हैं वो दो क्या कारण है:
डायबिटीज का सबसे अहम कारण अनुवंशिक हो सकता है। यह जीनेटिक प्रभाव (genetic influence) यानि वंशागत संक्रमण (hereditary transmission) या परिवार में किसी भी व्यक्ति को शुगर होने की वजह से आपको शुगर होने का खतरा बढ़ जाता है। कुछ विशेष जीनों के मुद्रण में बदलाव होने के कारण इंसुलिन के उत्पादन, उपयोग या इंसुलिन के प्रतिरक्षा की क्षमता को प्रभावित करते है।
डायबिटीज के पर्यावरणिक कारणों में खराब लाइफस्टाइल, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता (Physical inactivity), गलत खान-पान का सेवन, तंत्रिका विकार, तनाव और अनियमित नींद जैसी कई चीज़े शामिल है। इन सभी कारकों की वजह से शरीर में इंसुलिन के उत्पादन और इस्तेमाल विफल हो जाता है या यह भी कह सकते हैं कि कम हो जाता है। यही कारण है जिससे व्यक्ति के शरीर में मधुमेह विकसित हो सकता है।
डायबिटीज को का प्रबंधन किया जा सकता है इसके लिए आपको कुछ आदतों के साथ कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
अगर आप अपने आहार में स्वस्थ और अच्छी चीज़े शामिल करते हैं जैसे कि अनाज, फल, सब्जियों, कम चर्बी वाले प्रोटीन आदि तो शुगर को मैनेज कर पाएंगे।
आप अपनी दिनचर्या में नियमित व्यायाम, योग या ध्यान को जरूर शामिल करें। आप खुदको नियमित शारीरिक गतिविधियों का हिस्सा बनाएं, चाहे तो एयरोबिक और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी कर सकते हैं।
आप नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर का मॉनिटरिंग जरूर करें।
डॉक्टर द्वारा बताई हुई दवाइयाँ समय से लें।
डायबिटीज प्रबंधन के लिए डॉक्टर से नियमित जाँच करवाते रहें और उनकी दी हुई सलाह का पालन करें।
डायबिटीज से बचाव के लिए आहार और व्यायाम दोनों की मदद से अपने वजन को कंट्रोल में रखें।
डायबिटीज से जूझ रहे व्यक्ति को तनाव कम लेना चाहिए। आप तनाव से दूर रहने के लिए ध्यान, योग, या गहरी सांसें लेने जैसी गतिविधियों का सहारा लें सकते हैं।
डायबिटीज को मैनेज करने के लिए पर्याप्त और गुणवत्ता वाली नींद लें।
खुदको हाइड्रेटेड रखें। किडनी को समर्थन देने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें।
डायबिटीज के मरीजों में यह देखा गया है कि कटाव, घाव या संक्रमण जल्दी से ठीक नहीं होते हैं। इसलिए थोड़ा ध्यान से कार्य करें।
ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करें क्योंकि यह आपके दिल सी जुड़ी समस्या के जोखिम को बढ़ा सकता हैं।
डायबिटीज का इलाज अलग-अलग तरीकों से हो सकता है। इसके लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं और टेस्ट के रिपोर्ट के अनुसार मरीज का इलाज शुरू किया जाता है।
यह टेस्ट ब्लड शुगर लेवल को लंबे समय तक मापने का एक बहुत ही अच्छा माध्यम है। इसकी मदद से व्यक्ति के पिछले 2-3 महीनों में ब्लड शुगर का लेवल कैसा रहा है यह जानना जा सकता है।
यह टेस्ट रात के खाने के बाद की अवधि के बाद निर्धारित होता है। यह मरीज के ब्लड में शुगर की मात्रा कैसी है यह बताता है जब मरीज खाना खाए बिना समय बिताता है।
यह टेस्ट खाने के बाद की अवधि में ब्लड शुगर की मात्रा को नापता है। यह टेस्ट यह बताता है कि आपके शरीर को खाने के बाद की शुगर कैसे मैनेज करता है।
यह आपको खुद ही ब्लड शुगर लेवल को नापने अनुमति देता है। यह डायबिटीज को मैनेज करने में भी मदद करता है।
इस टेस्ट की मदद से शरीर में इंसुलिन की मात्रा और कार्य को नापा जाता है। इस की मदद से इंसुलिन संबंधित समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।
यह टेस्ट रक्त में विभिन्न प्रकार के चर्बी के स्तरों को नापने में मदद करता है। डायबिटीज से संबंधित दिल और सिर दर्द से जुड़ी समस्याओं का पता लगाने में सहायता करता है।
डायबिटीज आज के समय में बहुत से लोगों में दिखाई देता है। लेकिन आप इसको कंट्रोल कर सकते हैं उसके लिए डॉक्टर आपकी स्थिति और लक्षणों को देखते हुए दवाई और इलाज शुरू करते हैं।