ईसीजी जिसको इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट भी कहते हैं यह एक सरल और साधारण टेस्ट है। ईसीजी टेस्ट की मदद से डॉक्टर दिल की लय और विद्युत गतिविधि की जाँच कर पाते हैं। ईसीजी या ईकेजी में इलेक्ट्रोड नामक एक सेंसर का इस्तेमाल होता है। इस सेंसर को छाती और हाथ के आस-पास के हिस्से पर लगाया जाता है, जिसकी मदद से दिल की धड़कन पर उत्पन्न होने वाले विद्युत संकेतों का पता लगाया जा सकें। एक मशीन इन सभी संकेतों को रिकॉर्ड करती है। यह पूरी जाँच एक दिल के रोग विशेषज्ञ की देखरेख में ही किया जाता है।
अगर किसी दिल के रोग विशेषज्ञ या डॉक्टर को दिल के रोग की संभावना नज़र आती है, तो वह ईसीजी टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। ईसीजी टेस्ट नॉर्मल रेंज से पता चलता है कि व्यक्ति के दिल में कोई समस्या तो नहीं है। यह प्रक्रिया किसी अस्पताल या क्लिनिक में की जाती है।
ईसीजी टेस्ट करवाना लोगों के लिए इसलिए ज़रूरी है क्योंकि जिससे दिल की सेहत के बारे में जाना जा सकें। कुछ ऐसे लक्षण हैं जो दिल की बिमारियों के बारे में संकेत दे सकते हैं और उनको पहचाने के लिए डॉक्टर ईसीजी टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। अगर संकेतों की बात करें तो सीने में दर्द होना, सांस की तकलीफ होना या फिर घबराहट महसूस होना आदि शामिल है। अगर किसी भी व्यक्ति को यह लक्षण महसूस हो रहे हैं तो बिना किसी देरी करें डॉक्टर से ईसीजी टेस्ट यानी इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट के बारे में जानें।
ईसीजी टेस्ट की मदद से दिल की धड़कनों की गति, रिदम और ताकत आदि को रिकॉर्ड किया जाता है। इससे डॉक्टर यह जान पाते हैं कि व्यक्ति के दिल की धड़कन सामान्य रूप से चल रही है या फिर उसमें कोई असामान्यता नज़र आ रही है।
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अगर किसी व्यक्ति को दिल से जुड़ी कोई समस्या हो रही है तो ईसीजी टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर डॉक्टर मरीज के ट्रीटमेंट की योजना बनाते हैं।
कभी-कभी दिल से जुड़ी कुछ अस्थायी समस्याएं हो सकती हैं जिसमें शामिल है तनाव या अन्य कारणों से होने वाली दिल की धड़कन में बदलाव आदि। ईसीजी टेस्ट इन अस्थायी समस्याओं की पहचान करता है और डॉक्टर को इलाज में सहयोग मिलता है, जिसके आधार पर वह उपचार का चयन करते हैं।
ईसीजी टेस्ट की मदद से दिल की मांसपेशियों के स्वास्थ्य के बारे में भी पता लगाया जा सकता है, जिससे यह पता चलता है कि दिल की मांसपेशियां सही तरीके से अपना काम कर पा रही हैं या नहीं।
ईसीजी टेस्ट करवाने की जरूरत उन लोगों को भी पड़ती है जिनके परिवार में पहले से कोई दिल की बीमारी से ग्रसित चल रहा हो। अगर किसी का दिल की बीमारी से सम्बंधित पारिवारिक इतिहास रहा है तो उस व्यक्ति को दिल के स्वास्थ्य का ध्यान बेहद ज़रूरी हो जाता हैं और अगर दिल की बीमारी का पारिवारिक इतिहास नहीं है तब भी अपनी सेहत के प्रति जागरूक रहने के लिए ईसीजी टेस्ट करवा लेना चाहिए।
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ईसीजी टेस्ट एक खास टेस्ट है जो व्यक्ति के दिल की विद्युतीय गतिविधियाँ को रिकॉर्ड करता है। आइए जानते हैं कि ईसीजी टेस्ट कैसे किया जाता है और इसके लिए क्या-क्या ज़रूरी बातों का ध्यान रखने की आवश्कता हैं।
यह टेस्ट लैब में ही किया जाता है इसलिए आपको कुछ खास बातों का ध्यान रखें की ज़रुरत है। आपको सिर्फ अपनी त्वचा का ध्यान रखना उसके लिए बस साफ़ और सूखी होनी ज़रूरी है। वही कुछ मामलों में अगर शरीर पर अधिक बाल होते हैं, तो उनको हटाने के लिए कहा जाता है क्योंकि ईसीजी टेस्ट के लिए त्वचा पर इलेक्ट्रोड का अच्छी तरह से चिपकना ज़रूरी है।
व्यक्ति को एक आरामदायक स्थिति में बैठा या लेटा दिया जाता है। फिर उसकी छाती, हाथों, और पैरों पर ईसीजी टेस्ट करने के लिए छोटे इलेक्ट्रोड जो देखने में पैड्स जैसे होते हैं उनको लगा दिया जाता हैं। यह इलेक्ट्रोड दिल की विद्युत गतिविधियों के बारे में पता लगाने का काम करते हैं। इलेक्ट्रोड लगाने के बाद दिल के धड़कने के दौरान जो भी विद्युत संकेत पैदा होते हैं, उन संकेतों के बारे में पता लगाता हैं और फिर उनके बारे में जानने के लिए एक मशीन में भेजा जाते हैं।
जब ईसीजी टेस्ट के लिए इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं तो मशीन के माध्यम से व्यक्ति की दिल की विद्युत गतिविधियों को रिकॉर्ड करते हैं। सटीक रीडिंग पाने के लिए टेस्ट करते समय कुछ समय के लिए व्यक्ति को अपनी सांस रोकने या बहुत ही स्थिर रहने की सलाह दी जाती है। यह प्रोसेस 5 से 10 मिनट में पूरा हो जाता है।
ईसीजी परीक्षण के बाद, दर्ज की गई गतिविधियों को एक ग्राफ़ या ट्रेस पर देखा जाता है। एक दिल के रोग विशेषज्ञ या चिकित्सा विशेषज्ञ इसे देखकर परिणामों की व्याख्या करता है।
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कुछ लोगों के मन में यह सवाल होगा कि ईसीजी टेस्ट कब करवाना चाहिए? वैसे ईसीजी टेस्ट करवाने के पीछे कुछ फैक्टर्स होते हैं। युवा व्यक्तियों को ईसीजी टेस्ट करवाने की खास कोई जरूरत नहीं होती है, जब तक उनका कोई हार्ट डिसीज से जुड़ा कोई पारिवारिक इतिहास न हो।
जो लोग मध्यम आयु और वृद्ध वयस्कों में हैं, अगर उनकी बात करी जाए तो उनमें किसी तरह का कोई दिल के स्वास्थ्य का जुड़ा लक्षण महसूस होता है तब ईसीजी टेस्ट (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम परीक्षण) करवाने की सलाह दी जाती है।
उम्र और इन लक्षणों के सिवा कुछ मेडिकल स्थितियों की वजह से ईसीजी टेस्ट करने की जरूरत पड़ सकती है। उन स्थितियों में शामिल है डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर क्योंकि इन समस्या के साथ जी रहे लोगों में दिल से जुड़ी समस्या होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है और इन लोगों नियमित रूप से अपने लिए ईसीजी टेस्ट बुक करवाना चाहिए।
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ईसीजी टेस्ट की नार्मल रिजल्ट की बात करें तो हार्ट रिदम लगातार और समान रहती है। वही हार्ट रेट 60 से 100 धड़कन प्रति मिनट रहतीहै। लेकिन असामान्य रिजल्ट की बात करें तो:-
जन्म से ही हार्ट डिसऑर्डर होना
दिल के आसपास की थैली में तरल पदार्थ होना
दिल के आसपास सूजन दिखाई देना
ब्लड में इलेक्ट्रोलाइट्स की मात्रा में बदलाव दिखाई देना
दिल की मांसपेशियों का डैमेज होना
दिल की मांसपेशियों में बदलाव
मायोकार्डिटिस की समस्या
हार्ट का बढ़ जाना
दिल की धमनियों में ब्लड सप्लाई का ख़राब हो जाना
असामान्य दिल की रिदम
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ईसीजी टेस्ट वैसे तो एक सुरक्षित टेस्ट होता है जिसके कोई ख़ास जोखिम तो नहीं होते हैं। लेकिन किसी भी अन्य मेडिकल प्रोसेस के दौरान या फिर इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट के भी कुछ जोखिम होने का डर हो सकते हैं।
ईसीजी टेस्ट के सबसे आम जोखिमों में त्वचा में जलन होना या टेस्ट के समय में छाती पर जो इलेक्ट्रोड पैड्स लगाए जाते हैं उससे एलर्जी हो सकती है, जिसके लक्षण के रूप में दाने, छाले, लालिमा या फिर खुजली हो सकती हैं।
इसके सिवा, ईसीजी टेस्ट से गुजरने से कुछ अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों जैसे कि अतालता (arrhythmia) या दिल से जुड़े रोग में में बढ़ावा आ सकता है। अगर टेस्ट के समय या टेस्ट के बाद व्यक्ति को सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होना या फिर घबराहट होती हैं, तो डॉक्टर से तुरंत सम्पर्क करें।
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ईसीजी टेस्ट एक महत्वपूर्ण निदान टेस्ट है जो कि दिल के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देता है। यह एक दर्दरहित प्रक्रिया होती है। व्यायाम और उचित आहार के साथ एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर, आप दिल की सेहत का ध्यान रख सकते हैं और नियमित रूप से ईसीजी टेस्ट करवाएं।
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