Monday, August 18 ,2025

Double Marker Test in Hindi - डबल मार्कर टेस्ट क्या होता है, कब किया जाता है और क्यों?


double marker test in hindi

डबल मार्कर टेस्ट एक डॉक्टर आमतौर पर पहली तिमाही के समय ही निर्धारित करता है क्योंकि इस टेस्ट की मदद से बढ़ते भ्रूण में कोई क्रोमोसोमल असामान्यताएं (Chromosomal abnormalities) मौजूद है या नहीं, इसके बारे में पता चलता है। वैसे तो इस टेस्ट को सभी महिलाओं को कराने की सलाह दी जाती है, लेकिन 35 से अधिक उम्र की महिलाओं को इस टेस्ट को विशेष रूप से कराने को कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उम्र के साथ जेनेटिक एब्नार्मेलिटीज (Genetic Abnormalities) वाले बच्चे का गर्व धारण करने का खतरा अधिक बढ़ जाता है।

डबल मार्कर टेस्ट क्या होता है? (double marker test in Hindi)

भ्रूण में बीमारियों या जन्मजात समस्याओं को देखने के लिए के लिए पहली तिमाही के समय किये जाने वाले टेस्ट को डबल मार्कर टेस्ट कहते हैं। टेस्ट वैसे तो गर्भवस्था के 11 से 14 हफ्ते में होता है। इस टेस्ट के दौरान दो प्रमुख हार्मोन लेवल की जाँच होती है जिनका नाम है  फ्री बीटा ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (Free Beta Human Chorionic Gonadotropin) और गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन-ए (Plasma Protein-A)। 

जानिए प्रेग्नेंसी से पहले कौन-से टेस्ट करवाने जरूरी है?

डबल मार्कर टेस्ट कब करवाना चाहिए? (When should a double marker test be done in Hindi?)

डबल मार्कर टेस्ट (dual marker test in hindi) ज़्यादातर गर्भवती महिलाओं के लिए एक नियमित निदान मूल्यांकन है। हालाँकि, कुछ महिलाओं में जन्मजात विकलांगता वाले बच्चे होने का ख़तरा अधिक होता है, जिसके लिए डबल मार्कर टेस्ट की ज़रूरत होती है। अगर महिला की उम्र 35 वर्ष से ज्यादा है तो जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे भ्रूण में जन्मजात असामान्यताएं होने की संभावना का खतरा भी अधिक हो जाता है। जन्मजात विकृतियों (congenital malformations) का पारिवारिक इतिहास है। अगर मां को डायबिटीज की समस्या है या फिर इंसुलिन रेजिस्टेंस का पारिवारिक इतिहास मौजूद है, तो भ्रूण में क्रोमोसोमल एब्नार्मेलिटीज दिखाई दे सकती हैं।

गर्भधारण से पहले AMH टेस्ट करवाना कई महिलाओं के लिए जरूरी हो सकता है। AMH लेवल बढ़ाने के प्राकृतिक तरीके अपनाने से प्रेग्नेंसी प्लानिंग आसान होती है – इसके बारे में अंग्रेजी में जानिए Best Natural Ways to Boost AMH Levels 

डबल मार्कर टेस्ट क्यों होता है? (double marker test done in Hindi)

डबल मार्कर टेस्ट वैसे तो कई तरह की बीमारियों के खिलाफ भ्रूण की भविष्यवाणी करने में काफी सफल माना जाता है:-  

एडवर्ड सिंड्रोम (Edwards syndrome)

यह 18 के ट्राइसॉमीके कारण होता है, जिसका असर सामान्य मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से पड़ सकता हैं, जिसमें विकास से जुड़े विकार और विभिन्न मौखिक समस्याएँ होना शामिल हैं। इनका पता डबल मार्कर टेस्ट द्वारा लगाया जा सकता है।

डाउन्स सिन्ड्रोम (Down's syndrome)

यह गुणसूत्र 21 (chromosome 21) की ट्राइसॉमी है। इससे कई संज्ञानात्मक, व्यवहारिक और चिकित्सीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यह टेस्ट निर्धारित करने में भी सहायक होता है कि शिशु की मांसपेशियों में कमी होगी, गर्दन के पिछले हिस्से पर त्वचा का अत्यधिक विकास होगा, या गर्दन छोटी होगी आदि।

माइक्रोसेफली डिटेक्शन (Microcephaly Detection)

टेस्ट भ्रूण में सिर के दोषों का पता लगने में मदद करता है, जैसे कि माइक्रोसेफली, जिसमें सिर अविकसित और छोटा रह जाता है। यह पटाऊ सिंड्रोम (ट्राइसॉमी ऑफ़ 13) के साथ जन्मे शिशुओं में देखा जाता है। 

माइक्रोगैनेथिया डिटेक्शन (Micrognathia detection)

डबल मार्कर परीक्षण असामान्य जबड़े और धनुषाकार रीढ़ वाले नवजात शिशुओं में माइक्रोग्नाथिया का सफलतापूर्वक पता लगा सकता है।

डबल मार्कर टेस्ट के साथ-साथ बीटा HCG टेस्ट भी गर्भावस्था में अहम होता है।

डबल मार्कर टेस्ट के समय क्या होता है? (during double marker test in Hindi)

डबल मार्कर टेस्ट में ब्लड सैंपल और अल्ट्रासाउंड टेस्ट किया जाता है, जो कि दो मार्करों का विश्लेषण करती है।  मुक्त बीटा एचसीजी (Free Beta Human Chorionic Gonadotropin)और गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन ए (Plasma Protein-A) (पीएपीपी-ए)। फ्री बीटा-एचसीजी एक हार्मोन है जो गर्भवती महिलाओं में प्लेसेंटा द्वारा स्रावित होता है, और इस हार्मोन का हाई लेवल ट्राइसोमी-18 और डाउन सिंड्रोम के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ होता है। दूसरी ओर, PAPP-A एक प्लाज़्मा प्रोटीन है जो शरीर द्वारा कामकाज के लिए ज़रूरी है। प्लाज़्मा प्रोटीन लेवल जितना कम होगा, डाउन सिंड्रोम होने की संभावना उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी। डबल मार्कर टेस्ट के रिजल्ट को पॉजिटिव, हाई रिस्क और नेगेटिव में वर्गीकृत करते है।

जिन महिलाओं की उम्र 35 वर्ष से अधिक होती है या फिर जिनके परिवार में जन्म दोष का इतिहास रहा होता है, डॉक्टर उनको टेस्ट कराने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि उनमें क्रोमोजोम असामान्यता होने की संभावना अधिक रहती है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे में क्रोमोजोम विकृति हो सकती है।

कुछ महिलाओं में IVF प्रक्रिया के दौरान डबल मार्कर टेस्ट की सिफारिश की जाती है।

डबल मार्कर टेस्ट की प्रक्रिया क्या है? (procedure of double marker test in Hindi)

इस टेस्ट के समय, सबसे पहले अल्ट्रासाउंड किया जाता है, फिर दो मार्करों के लेवल को निर्धारित करने के लिए ब्लड टेस्ट होता है। जिसमें शामिल है फ्री बीटा-एचसीजी (बीएचबी) और फ्री पीएपीपी-ए। इस टेस्ट का संचालन सीधा है, इसमें सिर्फ गर्भवती महिला के ब्लड सैंपल के नमूने की ज़रुरत होती है।

अतिरिक्त चरण:- 

  • नसों से खून का नमूना कलेक्ट करने के लिए सुई का इस्तेमाल किया जाता है।

  • बाजु पर इलास्टिक बैंड बांध दिया जाता है जिससे नस के उभर के नज़र आए।

  • एक बार जब नसे दिखाई देने लगती हैं, तो जहाँ से खून का सैंपल लेना है उस जगह पर एक विशेष एंटीसेप्टिक से साफ़ किया जाता है।

  • नस में सुई को सावधानी से डाला जाता है, जिससे महिला को थोड़ी चुभन या दर्द जैसा मेहसू हो सकता है। टेस्ट से पहले, सैंपल कलेक्ट करके टेस्ट ट्यूब में रखा जाता है फिर उसे आगे की जाँच के लिए लैब में भेज दिया जाता है।

यह एक सीधी और सरल प्रक्रिया है जिसको पूरा होने में पांच से दस मिनट का ही समय लगता है। इस स्थिति को बेहतर ढंग से मैनेज करने एक लिए डुअल मार्कर टेस्ट को शेड्यूल करने का सुझाव दिया जाता है।

कुछ जटिल प्रेग्नेंसी मामलों में D-Dimer टेस्ट की भी जरूरत पड़ सकती है।

असामान्यताओं के संकेत (Signs of abnormalities in double marker test in Hindi)

डबल मार्कर टेस्ट के रिजल्ट में कुछ असामान्यताएं पाई जा सकती हैं, जो कि एक गर्भवती महिला के लिए चिंता का विषय बन सकती हैं। यह असामान्यताएं कुछ विशेष स्वास्थ्य समस्याओं की ओर एक बढ़ा संकेत देती हैं। आइए जानते हैं उन असामान्यताओं के बारे में :- 

डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome)

डाउन सिंड्रोम में बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य से धीमा होता है और यह एक जन्मजात विकार है।

ट्राइसॉमी 18 (Trisomy 18)

ट्राइसॉमी विकार में भ्रूण में गुणसूत्रों (chromosomes )की संख्या में असामान्यता होती है, जिससे बच्चे में गंभीर शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो सकती हैं।

ट्राइसॉमी 13 (Trisomy 13)

ट्राइसॉमी की स्थिति में क्रोमोसोम (chromosomes ) में असामान्यता होती है, जो कि गंभीर जन्म दोषों और बच्चे के जीवन की कम अवधि की वजह बन सकती है।

न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (Neural Tube Defect)

न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट में भ्रूणके मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है, जिससे जन्म के बाद शारीरिक समस्याएं होने खतरा बना रहता है।

गर्भावस्था में कैल्शियम की कमी हड्डियों के स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है। जानिए Calcium Deficiency in Hindi

डबल मार्कर टेस्ट कराने के क्या फायदे हैं? (advantages of double damage test in Hindi)

डबल मार्कर टेस्ट की मदद से गर्भवती महिलाओं में एचसीजी और पीएपीपी-ए की मात्रा के बारे में पता लगाया जा सकता है, जो यह दर्शता कि बच्चे में किसी भी तरह की कोई जेनेटिक समस्या तो नहीं है।

जेनेटिक समस्याओं के बारे में पता चलता है

डबल मार्कर टेस्ट की मदद से बच्चे को डाउन सिंड्रोम जैसी कोई समस्या तो नहीं है, उसके बारे में पता चलता है।

जल्दी पहचान

प्रेगनेंसी के 11 से 14 हफ्ते के बीच यह टेस्ट किया जाता है। जिसकी मदद से समस्या के बारे में जल्दी पता चलता है। अगर कोई समस्या होती है।

मानसिक शांति

टेस्ट के अगर अच्छे परिणाम आते हैं तो मां को मानसिक शांति मिल जाती है कि बच्चा स्वस्थ है।

मां की सेहत का ध्यान

इस टेस्ट से मां की सेहत के बारे ममें भी जानना जाता है और अगर किसी भी प्रकार की कोई समस्या का संकेत मिलता है, तो उसका इलाज तुरंत करके, समस्या को गंभीर होने से बचाया जा सकता है।

सुरक्षित टेस्ट का तरीका

डबल मार्कर टेस्ट को एक सुरक्षित ब्लड टेस्ट माना जाता है, जिसमें मां और बच्चे को किसी भी रूप से कोई भी नुकसान नहीं होता है।

आगे की योजना तय करना

अगर टेस्ट से किसी भी प्रकार की कोई समस्या का पता चलता है, तो डॉक्टर फिर आगे की जांच और सही इलाज की योजना का निर्माण करते हुए चयन करते हैं।

गर्भवती महिलाओं में विटामिन D की कमी बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकती है।

नोट: 

डबल मार्कर टेस्ट असामान्यताओं की शुरुआती पहचान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, हालाँकि यह अनिवार्य नहीं होता है। यह टेस्ट करवाने से अतिरिक्त जानकारी प्राप्त होती है जो कि गर्भावस्था की प्रगति और समग्र गर्भावस्था प्रबंधन में काफी मदद कर सकती है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान विशेष जांच की आवश्यकता होती है। जानिए पीसीओएस के कारण, लक्षण और इलाज

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