डीएलसी टेस्ट यानी डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट (Differential Leukocyte Count), यह टेस्ट हमारे शरीर में श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) की कुल संख्या के बारे में बताता है। मानव शरीर में तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं, लाल रक्त कोशिकाएँ यानी रेड ब्लड सेल्स (RBC), श्वेत रक्त कोशिकाएँ यानी वाइट ब्लड सेल्स (WBC) और रक्त प्लेटलेट्स। डीएलसी श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक घटक है जिसे लड़ाकू कोशिकाएँ (fighter cells) भी कहा जाता है। जब हमारे शरीर में किसी भी प्रकार का संक्रमण होता है तो वाइट ब्लड सेल्स (WBC) सक्रिय हो जाती हैं और उस संक्रमण से लड़ती हैं, यानी एक तरह से यह फाइटर सेल्स होती हैं जो हमारे शरीर को संक्रमण से बचाव करती हैं।
श्वेत रक्त कोशिकाएँ हमारे शरीर को किसी भी तरह के खतरे से बचाती हैं। यह लड़ाकू कोशिकाओं (fighter cells) की तरह काम करती हैं। जब भी हमारे शरीर में कोई संक्रमण होता है या बाहर से कोई बाहरी अणु आता है, तो हमारे शरीर में श्वेत रक्त कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं। यह श्वेत रक्त कोशिकाएँ उन कणों से लड़ती हैं या उन्हें नष्ट कर देती हैं ताकि हमारे शरीर को किसी भी तरह की बीमारी न हो। लेकिन कई बार जब श्वेत रक्त कोशिकाएँ हमारे शरीर की रक्षा नहीं कर पातीं, तो हमारे शरीर में बहुत गंभीर बीमारियाँ हो जाती हैं।
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वाइट ब्लड सेल के 5 प्रकार होते हैं :-
लिम्फोसाइट (Lymphocyte)
मोनोसाइट (Monocyte)
न्यूट्रोफिल (Neutrophil)
बेसोफिल्स (Basophils)
इओसिनोफिल्स (Eosinophils)
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डीएलसी टेस्ट की मदद से हमारे शरीर में टोटल वाइट ब्लड सेल्स की गिनती की जा सकती है यानी इस टेस्ट की मदद से पता लगाया जा सकता है कि कितनी वाइट ब्लड सेल्स मौजूद है। डीएलसी टेस्ट एक जनरल स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल होता है, इस टेस्ट से दूसरी बीमारियों के बारे में भी पता लगाया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति को कोई इंफेक्शन होता है या फिर इंफेक्शन से होने वाली कोई बीमारी के बारे में पता करने के लिए, यह टेस्ट कराया जाता है, साथ ही यह टेस्ट समस्या के लेवल के बारे में पता करने के लिए भी कराया जाता है।
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वाइट ब्लड काउंट टेस्ट खून में विभिन्न तरह के ल्यूकोसाइट्स यानी की (सफ़ेद रक्त कोशिकाएं) की गणना करता है। इस टेस्ट की मदद से खून में भिन्न तरह की होने वाली समस्याओं के बारे में पता ल;गया जा सकता है। इन्फेक्शन, एलर्जी, या अन्य असामान्य कंडीशंस जैसी स्थिति शामिल है।
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वाइट ब्लड काउंट टेस्ट इन्फेक्शन के बारे में जानने व पहचानने में मदद कर सकता है। इन्फेक्शन के कारण व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ने लग सकती है, जिससे यह पता चलता है की शरीर में किस तरह का इन्फेक्शन है और साथ ही बीमारी के अनुसार मरीज का इलाज शुरू कर दिया जाता है।
व्हाइट ब्लड सेल्स खून के इम्यून सिस्टम के ज़रूरी भाग माने जाते हैं। डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट की मदद से इम्यून सिस्टम की स्वास्थ्य को जांचा जाता है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि किसी इंसान को किसी इन्फेक्शन या दूसरी समस्या से कितनी सुरक्षा की ज़रूरत है।
डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट यानी डीएलसी टेस्ट की मदद से व्यक्ति के खून की स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग करने में मदद मिल सकती है। साथ ही इस टेस्ट की मदद से खून से जुड़ी बीमारियों की पहचान की जा सकती है और उनके इलाज में सुधार लाने के लिए सही इलाज का चयन करने में भी मददगार रहता है।
अगर किसी इंसान का किसी भी कारण ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है, तो उससे पहले डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट कराना की सलाह दी जाती है। या टेस्ट ज़रूरी भी होता है क्योंकि इससे व्यक्ति के खून की स्वास्थ्य की जांच होती है और रिजल्ट के सही आने पर ऑपरेशन के लिए तैयारी की जा सकती है।
डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट के इन सभी कारणों की वजह से खून और इम्यून सिस्टम की स्वास्थ्य के मॉनिटरिंग में मदद मिलती है। यह टेस्ट ज़रूरी भी है क्योंकि अलग-अलग खून में होने वाली बीमारियों और इन्फेक्शनों के ट्रीटमेंट में भी यह मददगार साबित हो सकता है।
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डीएलसी टेस्ट के लिए सबसे पहले रक्त का नमूना लिया जाता है और फिर रक्त के नमूने को जांच के लिए लैब में भेजा जाता है। इसमें स्वचालित मशीनों का उपयोग करके डब्ल्यूबीसी की संख्या की गणना की जाती है। यह टेस्ट रक्त में विभिन्न ल्यूकोसाइट्स की संख्या का भी पता लगाता है, जिसका उपयोग बीमार व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है। इसके बाद डीएलसी टेस्ट की रिपोर्ट तैयार की जाती है। टेस्ट के परिणाम के आधार पर, डॉक्टर एक रिपोर्ट तैयार करता है जो कि बीमार व्यक्ति के उपचार या आवश्यक देखभाल में मदद करती है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि मानव शरीर में मौजूद श्वेत रक्त कोशिकाओं (डब्ल्यूबीसी) की सीमा सामान्य है या नहीं, जो कि 4000-11,000 माइक्रोलीटर है और इस रिपोर्ट में शरीर में विभिन्न प्रकार के ल्यूकोसाइट्स की मौजूदगी का प्रतिशत और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी शामिल होती है।
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आमतौर पर, संक्रमण के कारण श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। संक्रमण के साथ, ल्यूकोसाइट्स संक्रमित क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं और उन्हें नष्ट करने का काम करते हैं।
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गठिया और ब्रोंकाइटिस जैसी कुछ बीमारियाँ शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन पैदा करती हैं। इन बीमारियों से लड़ने के लिए, हमारा शरीर रक्त में श्वेत रक्त कोशिकाओं की मात्रा बढ़ाता है।
कुछ लोगों को विभिन्न खाद्य पदार्थों या यहां तक कि छोटी चीजों, जैसे पराग, धूल या सूर्य के प्रकाश से भी एलर्जी हो सकती है, जिसके कारण श्वेत रक्त कोशिकाओं में वृद्धि हो सकती है।
लंबे समय तक तनाव या अशांति महसूस करने के कारण भी व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ने लग सकती है।
रक्त प्रवाह में अस्थायी बदलाव के कारण भी ल्यूकोसाइट काउंट बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, किसी इंजेक्शन से रक्त प्रवाह में बदलाव आ सकता है।
यह सभी कारण डीएलसी में वृद्धि का कारण बन सकते हैं। ल्यूकोसाइट गिनती में वृद्धि का कारण हमेशा रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। इसलिए, किसी भी स्थिति में जहाँ रक्त परीक्षण के परिणाम सही या असामान्य न हों, व्यक्ति को डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
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इस बात का ध्यान रखें कि हर लैब की अपनी तय की हुई नार्मल रेंज होती है इसलिए कई बार टेस्ट रिजल्ट के लिए नार्मल अलग हो सकते हैं। आप सही जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सम्पर्क और रिपोर्ट दिखाए। वह आपकी स्वास्थ्य समस्या का निदान करेंगे।
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