टीएलसी टेस्ट का मतलब है टोटल ल्यूकोसाइट काउंट और हमारे शरीर में मौजूद श्वेत रक्त कोशिकाओं को ल्यूकोसाइट्स (leukocytes) कहते हैं। यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो किसी भी तरह के संक्रमण या बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं। जब भी शरीर में टीएलसी बढ़ने लगे, तो समझ लें कि यह किसी संक्रमण का संकेत है।
टीएलसी टेस्ट एक सामान्य और सरल रक्त परीक्षण है। टीएलसी टेस्ट रक्त में ल्यूकोसाइट्स (श्वेत रक्त कोशिकाओं) की संख्या का पता लगाता है। इसे डब्ल्यूबीसी काउंट भी कहा जाता है। श्वेत रक्त कोशिकाएं शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली का काम करती हैं और विभिन्न प्रकार के संक्रमणों, जैसे वायरस, बैक्टीरिया और कीटाणुओं से लड़ती हैं। साथ ही, यह शरीर में किसी भी प्रकार के संक्रमण और सूजन को ठीक करने में मदद करती हैं।
TLC टेस्ट के साथ ही अक्सर CBC टेस्ट भी करवाया जाता है ताकि पूरे खून की जांच हो सके।
न्यूट्रोफिल
इओसिनोफिल्स
बासोफिल्स
लिम्फोसाइट्स
मोनोसाइट्स
यह पांचों मिलकर ही ल्यूकोसाइट्स (leukocytes) या सफ़ेद ब्लड सेल्स का निर्माण करते हैं।
अगर शरीर में सूजन का पता लगाना हो तो CRP टेस्ट भी करवाया जाता है।
टीएलसी टेस्ट खून में लिम्फोसाइटों की संख्या के बारे में बताता है जो कि व्यक्ति की बीमारियों से लड़ने की क्षमता को जांचने में मदद करता है। टीएलसी टेस्ट से शरीर में रहने वाले जर्म्स जैसे कि वायरस, बैक्टीरिया तथा रोगाणु का पता लगाने में भी मदद करता है। जिससे सूजन, इम्यून डेफिसिएंसी (Immune Deficiency) या ब्लड कैंसर आदि जैसे बीमारियों का इलाज करने में आसानी व सहायता मिलती है। इसके सिवा, इस टेस्ट से शरीर में तरह-तरह के बीमारियों द्वारा हो रहे बदलावों को भी ट्रैक किया जा सकता है या कहें की मदद मिलती है।
अगर टीएलसी टेस्ट का रिजल्ट असामान्य आता हैं, तो यह संकेत देता है कि शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो रही है और इस कारण किसी भी बीमारी से बहुत जल्दी ही इन्फेक्टेड होने का खतरा बढ़ जाता है।
बैक्टीरियल इंफेक्शन की जांच के लिए Widal टेस्ट भी महत्वपूर्ण है।
टीएलसी टेस्ट को करने के लिए लैब में मौजूद फ्लेबोटोमिस्ट व्यक्ति के बांह की नस से खून का सैंपल लेते हैं। उसके लिए सबसे पहले वह बांह में जहाँ से खून कलेक्ट करना उसके ऊपर एक इलास्टिक बैंड बंधकर नस को उभारते है, फिर बांह में सुई डालकर खून का सैंपल लिया जाता हैं। एकत्र किए हुए खून को एक लाल रंग के ट्यूब में रखा जाता है। फिर उसके बाद कलेक्ट किए हुए सैंपल को लैब में भेजकर लिम्फोसाइट्स की संख्या के बारे में जाना जाता है।
कम्पलीट ब्लड काउंट यानी सीबीसी (CBC) टेस्ट करने के बाद, अगर सफेद ब्लड सेल्स की संख्या के बारे में गहन जानकारी चाहिए हो, तो फ्लो साइटोमेट्री (Flow Cytometry) प्रक्रिया को किया जाता है। इस तरीके से बढ़े हुए लिम्फोसाइट्स के रिस्पॉन्स और व्यवहार के बारे में पता लगाया जाता है।
आयरन लेवल पता करने के लिए Ferritin टेस्ट का भी सहारा लिया जाता है।
सैंपल लेते समय फ्लेबोटोमिस्ट को अपने हाथों को सैनिटाइज़ करना ज़रूरी होता है या फिर मेडिकल ग्लव पहनें। ऐसा करने से इन्फेक्शन होने का खतरा नहीं रहता है।
टीएलसी टेस्ट का सैंपल सही समय पर कलेक्ट किया जाना चाहिए क्योंकि लिम्फोसाइटों की संख्या बदलना संभव हो सकता है। इसलिए डॉक्टर के कहने पर ही सैंपल देना चाहिए।
टीएलसी टेस्ट से पहले किसी भी तरह का तनाव और भारी व्यायाम न करें, ऐसा इसलिए क्योंकि टीएलसी संख्या पर इनका प्रभाव पड़ता है। इस वजह से रिजल्ट पर भी असर पड़ सकता है।
टीएलसी टेस्ट के पहले विशेष तरह के खाने-पीने के नियमों का ज़रूर पालन करें। ऐसा इसलिए क्योंकि भोजन व्यक्ति के टीएलसी टेस्ट के परिणाम असर डालता हैं। इसलिए कोशिश करें कि डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही आप डाइट लें।
अगर मरीज पहले से ही किसी समस्या के लिए कोई दवाई का सेवन कर रहें है, तो इस बारे में डॉक्टर को पूरी जानकारी दें, जिससे दवाई जुडी कोई समस्या होती है, तो निर्देशों का पालन करें।
कम TLC के कारण एनीमिया जैसी समस्या भी हो सकती है।
लिम्फोसाइट्स के तीन प्रकार होते हैं, पहला टी सेल, दूसरा बी सेल और तीसरा एनके सेल। टी लिम्फोसाइट्स सेल्स का इस्तेमाल कैंसर सेल्स को मारने या खत्म करने के लिए किया जाता है, वही बी लिम्फोसाइट्स सेल शरीर में एंटीबॉडी को बनाने का काम करती है और एनके कोशिकाएँ स्वाभाविक रूप से घातक होती हैं और यह सेल्स वायरस के साथ-साथ कैंसर कोशिकाओं को भी मार सकती हैं। साथ ही, एनके सेल संक्रमण की पहचान करके उसे नष्ट करने में मदद करती हैं।
मलेरिया में भी TLC टेस्ट रिपोर्ट काफी कुछ बता सकती है।
जब व्यक्ति के शरीर में कोई संक्रमण मौजूद होता है, तो लिम्फोसाइटों की संख्या बढ़ने लग सकती है। अगर कोई व्यक्ति किसी भी तरह के वायरल, फंगल, बैक्टीरियल या फिर ट्रॉमेटिक संक्रमण से पीड़ित है साथ ही सूजन, गठिया, मूत्र संक्रमण, गाउट है, तो इसका अर्थ है कि शरीर में टीएलसी की मात्रा बढ़ गयी है। कुछ दवाइयों के सेवन से भी टीएलसी की संख्या बढ़ने का खतरा रहता है और उसमें शामिल है कीमोथेरेपी की दवाईयाँ और स्टेरॉयड आदि।
साँस के इन्फेक्शन
लिम्फोमा जैसे कैंसर की वजह से टीएलसी घट सकता है।
बढ़ती उम्र भी टीएलसी की संख्या में कुछ मात्रा में ही सही लेकिन गिरावट लाती है।
कुछ मामलों में TLC टेस्ट के साथ HIV टेस्ट भी करवाया जाता है।
टीएलसी को नियंत्रण में रखने के लिए सबसे ज़रूरी है कि व्यक्ति अच्छी स्वास्थ्य से जुड़ी आदतों को अपने दिनचर्या का हिस्सा बनाए। अच्छे खानपान के साथ ज़रूरी है कि मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखा जाए, अपने वजन पर नियंत्रण रख जाए साथ ही दिल की सेहत का भी विशेष ध्यान रख जाएं। टीएलसी डाइट प्लान को अपनाकर व्यक्ति डायबिटीज की समस्या, मोटापा और कोलेस्ट्रॉल आदि जैसी बीमारियों को भी नियंत्रित कर सकता है।
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यदि आप टीएलसी को नियंत्रण में रखना चाहते हैं, तो किसी भी प्रकार की कोई विशिष्ट आहार योजना की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि टीएलसी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए जिम्मेदार है और इसे डाइट प्लान द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। लेकिन हाँ, कुछ सामान्य सुझाव हैं जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं -
अपनी डाइट में विटामिन सी, और विटामिन ए और अन्य पोषक तत्व को शामिल करने के लिए फल और सब्जियों को जोड़े जिससे पौष्टिकता शरीर में भरपूर मात्रा में पहुँच सकें।
प्रोटीन हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है इसलिए सेहतमंद लिम्फोसाइट्स के लिए भी ज़रूरी होता है। अग्गर आप ध्यान दें, तो आहार में प्रोटीन के पौष्टिकता को शामिल करने के लिए दूध, दही, दालें, अंडे, मांस और मछली आदि का सेवन कर सकते हैं।
हरी पत्तियों और हरी चाय में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट्स और पौष्टिक तत्व, शरीर से रोग प्रतिरोधक प्रणाली के स्वस्थ को बहेतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
अगर कोई व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में पानी कसा सेवन करता है तो वह कई समस्याओं से अपना बचाव कर सकता है। साथ ही नमक का सेवन कम करते हुए शारीरिक व्यायाम करना शुरू करें। आप वजन को भी नियंत्रण में रखें जिससे स्वास्थ्य समस्या से बचाव हो सकें।
अगर जांच के परिणाम में ल्यूकोसाइट्स की संख्या अधिक या कम आती है तो यह बिल्कुल भी नहीं है कि व्यक्ति बताई गई बीमारियों से ग्रस्त हो चूका है। यह केवल संकेत है कि किसी असामान्य जटिलता का जो कि तनाव या अन्य कारण की वजह से भी हो सकती है। लेकिन फिर भी इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है इसलिए किसी डॉक्टर से सलाह से ज़रूर लें। एक साथ पूरी जांच करवाने के लिए Full Body Checkup का विकल्प भी है।
शरीर में हो रहे किसी भी असामान्य लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि वह किसी न किसी समस्या के बारे में संकेत हो सकता है, इसलिए डॉक्टर के परामर्श लें। टीएलसी टेस्ट की मदद से आगे आने वाली बीमारियों के खतरों को कम किया जा सकता हैं और स्वस्थ जीवन के लिए एक कदम बढ़ाया जा सकता हैं।
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