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बदलते वक़्त के साथ नई-नई बीमारियों ने भी हमारे शरीर में जगह बना ली है। वैसे तो आज कल शरीर में हार्मोन की गड़बड़ी एक बहुत आम समस्या बनती जा रही है, जिसके कारण वजन का बढ़ना या घटना एक आम समस्या बन गया है। जिसके चलते किसी भी व्यक्ति में कई तरह की बीमारियों को देखा जा सकता है। हार्मोन की गड़बड़ी के कारण सबसे ज्यादा थायराइड की बीमारी देखने को मिली है। अगर बात हम आयुर्वेद कि करें तो थायराइड का कारण वात, पित्त, और कैफ से जोड़ा जाता है। आज हम इस ब्लॉग में थायराइड के बारे में विस्तार से बात करेंगे।
थायराइड की समस्या किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, चाहे वो महिला हो या पुरुष लेकिन सबसे ज्यादा यह महिलाओं में देखी जाती है। यह आपके गले में मौजूद एक छोटी सी तितली जैसा दिखने वाला ग्लैंड यानि ग्रंथि हैं, जो आपके शरीर में हॉर्मोन बनाने में मदद करता है। यह एक एंडोक्राइन ग्रंथि है जो हमारे शरीर में टाईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) जैसे दो ज़रूरी हार्मोन बनाती है, जिससे हमारे शरीर के मेटाबॉलिज्म (खाने को ऊर्जा में बदलने वाली प्रक्रिया) को कंट्रोल करने में मदद मिलती है।
इन दोनों हार्मोन का उत्पादन और स्त्राव थायराइड-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है। यह पिट्यूटरी ग्रंथि (pituitary gland) में बनता है जिसके स्त्राव को थायराइड रिलीज करने वाले हार्मोन या टीआरएच की मदद से कंट्रोल किया जाता है। थायराइड ग्लैंड में कम या ज्यादा मात्रा में हार्मोन बनाने के कारण थायराइड की समस्या शरीर में जन्म लेती है। पुरुषों के मुक़ाबले यह समस्या महिलाओं मे ज्यादा देखी गई हैं। जहां पुरुष 0.5 % थायराइड की समस्या का शिकार होते हैं, वही 5% महिलाएं इस समस्या का शिकार बनती है। थायराइड हार्मोन का कम होना या ज्यादा होना दोनों ही मामलों में शरीर की कोशिकाओं को प्रभावित करती है।
थायराइड के दो प्रकार होते हैं हाइपरथायराइडिज्म (hyperthyroidism) और हाइपोथायराइड (Hypothyroidism)। हाइपरथायराइडिज्म को हाइपरथायराइड (ओवरएक्टिव थायराइड) भी कहते है क्योंकि इसमें थायराइड हार्मोन अधिक मात्रा में बनाने लग जाते हैं, जिसके चलते टी3 और टी4 का स्तर बढ़ जाता है। साथ ही टीएसएच स्तर कम होने लग जाता है और कई बार थायराइड ग्लैंड में सूजन आने के कारण हाइपरथायराइड की समस्या हो सकती है।
वही हाइपोथायरायडिज्म को हाइपोथायराइड (अंडरएक्टिव थायराइड) भी कहा जा सकता है क्योंकि इसमें थायराइड हार्मोन कम मात्रा में बनाने लगता है, जिसके चलते टी3 और टी4 का स्तर घट जाता है। साथ ही टीएसएच स्तर बढ़ने लग जाता है। अगर आसान तरीके से समझा जाए तो हाइपरथायराइड में व्यक्ति का वजन तेज़ी से कम होने लगता है और वहीं हाइपोथायराइड में व्यक्ति का वजन तेज़ी से बढ़ने लगता है। दोनों ही अवस्थाओं में व्यक्ति को अलग-अलग तरीके से अन्य बीमारियों का भी समाना करना पड़ सकता हैं।
थायराइड होने के कारण आपको अपने शरीर में कई तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं जो कि थायराइड के लक्षण हो सकते हैं। जिसे सही समय पर समझकर आप इससे होने वाली अन्य समयसा से बचाव कर सकते हैं। थायराइड के प्रकार के आधार पर इनके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं:-
चिड़चिड़ा महसूस करना,
घबराहट
नींद न आना
वजन घटना
आँखों में जलन
नज़र कमजोर होना
मांसपेशियों में कमजोरी
थकान रहना
सांस फूलना
दिल की धड़कन तेज़ होना
गर्मी ज्यादा लगना
ज्यादा प्यास लगना
बाल झड़ना या बालों का पतला होना
आँखों में सूखापन आना
ज्यादा पसीना आना
अनियमित मासिक धर्म (पीरियड)
थकान
वजन बढ़ना
बाल और नाखून कमजोर होना
मानिसक तनाव
अवसाद (डिप्रेशन)
त्वचा का रूखा होना
सर्दी ज्यादा लगना
मांसपेशियों में अकड़न
गला बैठना
दिल की धड़कन की गति धीरे होना
आँखों और चेहरे पर सूजन
कब्ज़
बाते भूलना
अनियमित मासिक धर्म (पीरियड)
पसीना कम आना
खून में कोलेस्ट्रॉल बढ़ना
कर्कश आवाज़ होना
थायराइड होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे :
गलत खानपान
नींद का पूरा न होना
अव्यवस्थित लाइफ़स्टाइल
आयोडिन की कमी या अधिकता
ज्यादा चिंता करना
डायबिटीज
धूम्रपान
गर्भावस्था
हार्मोनल असंतुलन
आनुवंशिकता
अगर थायराइड के प्रकार के हिसाब से कारण की बात कि जाए तो, दोनों के लिए अलग-अलग कारण हो सकते हैं।
हाइपरथायराइडिज्म पैदा करने वाली स्थितियाँ :-
ग्रवेस रोग (graves’ disease) : यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें ऑटो आंटीबॉडी अधिक होने के कारण थायराइड हार्मोन का उत्पादन करने वाली ग्रंथि को उत्तेजित करने लगती है।
थायराइड ग्रंथि में गांठ : थायराइड ग्रंथि पर बनने वाली गांठ जो कैंसरयुक्त न हो उसके कारण हार्मोनेस का अधिक मात्रा में स्त्राव हो सकता है।
थायराइडिसिस (Thyroiditis) : इसमें थायरइड जमा हार्मोन को रिलीज करता है जिसमें कुछ हफ्ते या महीने लग सकते हैं। वैसे तो यह विकार दर्दनाक हो सकता है या फिर बिल्कुल महसूस नहीं होता।
हाइपोथायरायडिज्म पैदा करने वाली स्थितियाँ :-
थायराइडाइटिस (Thyroiditis): इस स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि मे सूजन आ जाने के कारण थायराइडाइटिस आपके थायरॉयड के जरिए उत्पादित हार्मोन की मात्रा को कम कर सकता है।
हाशिमोटो का थायरॉयडिटिस (Hashimoto's thyroiditis): यह आनुवंशिक और ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें शरीर की कोशिकाएं थायरॉयड पर हमला करती हैं और उसे नुकसान पहुंचाती हैं लेकिन यह एक दर्द रहित बीमारी है।
पोस्टपार्टम थायरॉइडाइटिस (Postpartum thyroiditis): यह एक अस्थायी है जो 5% से 9% महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद होती है।
गैर-कार्यशील थायरॉयड ग्रंथि (non-functioning thyroid gland): कई बार थायरॉयड ग्रंथि जन्म के वक़्त से ही सही तरह से काम नहीं करती है। यह लगभग 4,000 नवजात शिशुओं में किसी 1 को ही प्रभावित करता है। लेकिन समय पर इलाज नहीं किया जाए, तो बच्चे को भविष्य में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की समस्याओं का समाना करना पड़ सकता है।
थायराइड की जांच समय पर हो जाने से आने वाली किसी भी बड़ी समस्या से बचा सकता हैं। इसकी जांच से पहले डॉक्टर आप से यह ज़रूर पूछा सकते हैं कि परिवार में किसी को यह समस्या है या नहीं, क्योंकि यह आनुवंशिकता है। हाइपरथायराइडिज्म की जांच के लिए कुछ टेस्ट होते है जैसे कि :
खून की जांच : टीएसएच, टी3, टी4 का लेवेल चेक किया जाता है।
इमेजिंग परीक्षण : अल्ट्रासाउंड की मदद से इमेजिंग परीक्षण किया जाता है जिससे थायराइड पर किसी भी तरह की गांठ, यह आयोडिन की कमी से होने वाली समस्या के बारे में पता लगाया जाता है।
हाइपोथायरायडिज्म की जांच के लिए लक्षण देखे जाते हैं और कई बार इसका अहम कारण आनुवंशिकता भी होता है। इसकी जांच दो तरह से की जाती है:
खून की जांच : टीएसएच, टी3, टी4 का लेवेल चेक करने के लिए
इमेजिंग परीक्षण : थायराइड ग्लैंड का अल्ट्रासाउंड जिससे इमेजिंग से इसके बारे में पता लगाया जा सकता है।
आज ही mediyaar से थायराइड टेस्ट बुक कीजिए और जानिए कि आप इस समस्या से मुक्त है या ग्रस्त।
आप चाहे तो कुछ बातों को ध्यान मे रखकर, थायराइड से बचाव कर सकते हैं।
रोज़ाना योग या शारीरिक श्रम करें
सेब का सेवन करें
रात में हल्दी के दूध का सेवन करें
धूप में बैठें
कम से कम 8 घंटे की नींद लें
पोष्टिक आहार का सेवन करें
थायराइड के होने के बाद कुछ बातों को ध्यान में रखकर, आप इसको बढ़ने से रोक सकते हैं, जैसे : मसालेदार और तेल वाला खाना कम खाएं, धूम्रपान और शराब का सेवन न करें, चाय और कॉफी का सेवन कम करें, मैदा का सेवन न करें आदि।
थायराइड होने पर डॉक्टर आपके टेस्ट रिपोर्ट देखने के बाद उसके हिसाब से आपको दवाई देते हैं और साथ में जीवनशैली में बदलाव करने की सलाह भी देते हैं। दवाई के साथ अगर आप अच्छी डाइट को फॉलो करते हैं तो आप जल्दी ही अपने थायराइड पर कंट्रोल पा सकते हैं। आप चाहे तो कुछ घरेलू नुस्खे भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
रात भर एक गिलास पानी में एक चम्मच सूखा धनिया भिगोकर रखें दें। फिर सुबह उसे आधा गिलास होने तक अच्छे से उबलें और खाली पेट ही धीरे-धीरे चाय की चुस्की की तरह पीए।
खाना बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करें या फिर एक चम्मच नारियल तेल का सेवन करें।
आप चाहे तो थायराइड की समस्या से छुटकारा पाने के लिए रोज़ सुबह खाली पेट लौकी के जूस का भी सेवन कर सकते हैं।
आप हरा धनिया को बारीक पीसकर, उसको एक गिलास पानी में घोलकर पी सकते हैं। इससे भी आपके बढ़े हुए थायराइड को कंट्रोल किया जा सकता है।
अपनी डाइट में आयोडिन की मात्रा को बढ़ाकर भी आप थायराइड को कंट्रोल कर सकते हैं और इसके सबसे अच्छे स्त्रोत प्याज, लहसुन और टमाटर आदि है।
हल्दी में करक्यूमिन नाम का एक तत्व होता है, जो थायराइड को कंट्रोल करने में काफी मददगार साबित होत है। रात को सोने से पहले हल्दी वाले दूध का सेवन थायराइड वाले रोगियों के लिए लाभदायक रहता है।
अगर आप दो चम्मच तुलसी के रस में आधा चम्मच ऐलोवेरा जूस मिलाकर सेवन करते हैं तो आप थायराइड की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।
नोट :
थायराइड की समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप योग का सहारा ले सकते हैं साथ ही अच्छी डाइट लें।