इओसिनोफिल्स एक तरह की सफ़ेद रक्त कोशिका होती हैं जो कि शरीर की इम्यून सिस्टम का हिस्सा ही होती हैं। यह कोशिकाएँ खून में सामान्य रूप से मौजूद होती हैं और यह खासकर उन स्थितियों में सक्रिय होती हैं जहाँ परजीवी संक्रमण, एलर्जी प्रतिक्रियाएँ, या सूजन की समस्या होती हैं। इओसिनोफिल्स शरीर में बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवियों आदि जैसे रोगजनकों को खत्म करने का काम करती है साथ शरीर को उनसे लड़ने में मदद करती हैं। यह एलर्जी जैसी स्थितियों होने पर भी प्रतिक्रिया करती हैं, लेकिन ज़्यादा गतिविधि होने पर सूजन भी हो सकती है और इससे परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
हमारे शरीर में इओसिनोफिल कोशिकाएं अस्थि मज्जा (bone marrow) में बनती हैं और इसके बनने में 8 दिन लगते हैं। इओसिनोफिलिया यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें खून में इओसिनोफिल नाम की कोशिकाओं की संख्या बहुत ही ज्यादा हो जाती है, जिस वजह से एलर्जी या संक्रमण की समस्या हो जाती है। कई ऐसे मामलों भी है, इओसिनोफिलिया की समस्या किसी दवाइयों या अन्य बीमारियों के कारण भी होने का खतरा हो सकता है।
इओसिनोफिलिया की समस्या व्यक्ति के फेफड़ों, दिल, रक्त वाहिकाओं, साइनस, किडनी और मस्तिष्क के भाग पर असर डालते हुए उन्हें प्रभावित कर देती है। इसी वजह से इस स्थिति का इलाज बहुत ज्यादा ज़रूरी हो जाता है।
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इओसिनोफिल की स्थिति में व्यक्ति के खून में इओसिनोफिल्स की संख्या बढ़ने लग जाती है। खून में इओसिनोफिल्स की बढती संख्या के अनेक कारण होते हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ समस्याएं और बीमारी जो कि इओसिनोफिलिया की वाजह बन सकती हैं। जैसे:-
ज्यादातर मामलों में यह देखने को मिला है कि इओसिनोफिलिया के पीछे की वजह एलर्जी से जुड़े विकार होते हैं। अस्थमा, एलर्जिक राइनाइटिस, और एटोपिक डर्मेटाइटिस (atopic dermatitis) आदि यह कुछ ऐसे एलर्जी है जो कि एक व्यक्ति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
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इओसिनोफिलिया के कारणों में पैरासाइट और फंगल संक्रमण सबसे ज्यादा देखने को मिलता है।
इओसिनोफिलिया के कुछ प्रकार कैंसर के कारण भी हो सकते हैं। ल्यूकेमिया (Leukemia), लिम्फोमा (Lymphoma), और मैलिग्नेंट मेलानोमा (Malignant Melanoma) आदि कुछ ऐसे प्रकार के कैंसर है जो कि इओसिनोफिलिया की वजह बन सकते हैं।
अगर किसी व्यक्ति को दमा की शिकायत है या रहती है, तो इस वजह से इओसिनोफिलिया की समस्या होने की संभावना बढ़ा जाती है। कुछ मामलों में दमा की वजह से मरीज की स्थिति और भी ज्यादा गंभीर हो सकती है। दमा की वजह से इओसिनोफिल्स ब्रोन्कियल ट्यूब (eosinophils bronchial tubes) में सूजन आने लग सकती है।
फेफड़ों से जुड़ी एलर्जी या संक्रमण में TB in Hindi लेख काफी मददगार है।
एलर्जिक राइनाइटिस (allergic rhinitis) में इओसिनोफिल्स नाक में सूजन और खुजली जैसी समस्या पैदा होने की संभावना रहती है।
एलर्जी से जुड़ी स्किन समस्याओं में Vitiligo in Hindi ब्लॉग मदद कर सकता है।
ओसिनोफिलिया के अहम कारणों में से एक त्वचा से जुड़ी समस्याएं होना है, जिसमें एक्जिमा और सोरायसिस आदि शामिल है।
इओसिनोफिलिया जैसे रोग के अहम कारण में कुछ ऑटोइम्यून बीमारियां शामिल होती है, जिसमें रूमेटिक आर्थराइटिस (Rheumatic arthritis) और सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (systemic lupus erythematosus) है।
अस्थि मज्जा से जुड़ी कुछ समस्याएं हैं, जैसे माइलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम (Myelodysplastic syndrome) और ल्यूकेमिया , जो इओसिनोफिलिया की वजह बन सकती हैं। इन स्थितियों में, बोन मैरो इओसिनोफिल्स का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होती और मरीज को बहुत सी परेशान का सामना करना पड़ता हैं।
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इओसिनोफिलिया की समस्या के बारे में बेहतर तरीके से जानने के लिए उसके लक्षणों पर ध्यान देने कि ज़रुरत है:-
शरीर में थकान होना भी इओसिनोफिलिया की समस्या को पैदा करने वाली स्थितियों में सबसे आम मानी गयी है।
शरीर के अंदर हो रहे किसी भी इन्फेक्शन या सूजन की स्थिति होने पर बुखार आ सकता है।
खांसी लगातार की समस्या बनी रहना या फिर अस्थमा और साँस से जुड़ी समस्या, इस स्थिति का कारण हो सकती है।
सांस की तकलीफ होने पर इओसिनोफिलिक अस्थमा या फुफ्फुसीय इओसिनोफिलिया (Pulmonary Eosinophilia) की स्थिति बन सकती है।
इओसिनोफिलिक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (Gastrointestinal) बिमारियों की वजह से इओसिनोफिलिक एसोफैगिटिस (Eosinophilic Esophagitis) की समस्या हो सकती है।
इओसिनोफिलिया पैदा करने वाली कुछ ऐसी स्थितियों में जोड़ों में दर्द या सूजन नज़र आ सकती हैं। यह समस्या खासकर तब भी हो सकती है जब किसी को कोई ऑटोइम्यून कम्पोनेंट हो।
वजन में कमी आने कि वजह से ईोसिनोफिलिया से जुड़ी पुरानी स्थितियों या घातक बीमारियां हो सकती है।
अगर बार-बार थकान महसूस होती है, तो A Complete Overview of Fatigue अंग्रेजी में जरूर पढ़ें।
इओसिनोफिल्स की समस्या के सामान्य और असामान्यता की स्थिति होने के बारे में समझते हैं:-
इओसिनोफिल्स खून में कुल सफ़ेद ब्लड सेल के 1 से 4% के बीच में होना चाहिए।
जब इओसिनोफिल्स की संख्या सामान्य से ज्यादा होने लग जाती है, तब इस स्थिति को हाइपरइयोसिनोफ़िलिया कहते हैं। यह एलर्जी अस्थमा या कुछ संक्रमणों और बिमारियों जैसे कि ईयोसिनोफिलिक एसोफैगाइटिस (eosinophilic esophagitis और हाइपरइयोसिनोफ़िलिक सिंड्रोम का इशारा हो सकता है।
जब इओसिनोफिल्स की संख्या कम होने लगती है तो स्थिति को हाइपोइयोसिनोफ़िलिया कहते हैं जो कि दूसरी खून से जुड़ी बीमारियों या संक्रमणों की ओर एक संकेत हो सकता है।
Anemia Symptoms in Hindi में खून की कमी के लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
इओसिनोफिल्स की सामान्य रेंज के बारे में समझे जिससे आप अपने स्वयं के स्वास्थ्य के बारे में ओर बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। आइए समझते हैं कि नार्मल, हाई और लो रेंज के बारे में:-
इओसिनोफिल्स की सामान्य रेंज 0 से 500 सेल्स प्रति माइक्रोलीटर या व्यक्ति के सफ़ेद ब्लड सेल्स के 1 से 4% के बीच में होनी चाहिए।
इओसिनोफिल्स की लो रेंज 30 सेल्स प्रति माइक्रोलीटर या उससे भी कम हो सकती हैं। इस स्थिति को इओसिनोपेनिया कहते हैं। ज्यादातर मामलों में, इस समस्या के कुछ लक्षण भी नहीं होते हैं क्योंकि अन्य सफ़ेद रक्त कोशिकाएं भी रोग से लड़ने वाले एजेंट के रूप में काम करने लग जाती हैं। लेकिन अगर ऐसा लगातार होता है, तो परजीवी संक्रमण का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
जब इओसिनोफिल्स बहुत ही अधिक हो जाते हैं, जो प्रति माइक्रोलीटर 450 से 500 सेल्स से ज्यादा हो जाता है। इस स्थिति को ईोसिनोफिलिया कहते हैं।
अगर नियमित ब्लड टेस्ट के दौरान इओसिनोफिल्स का लेवल हाई हो जाता है तो यह खतरे की बात नहीं होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे बहुत सी वजह से हो सकती हैं, जिनकी वजह से किसी भी व्यक्ति की लैब वैल्यू उच्च हो जाती है। एलर्जी, पुरानी सूजन की स्थिति और गंभीर बीमारी आदि इसके लक्षण या कारण हो सकते हैं। इस अर्थ यह हुआ कि व्यक्ति का इम्यून सिस्टम काम कर रहा है।
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इओसिनोफिलिया से बचने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपनी स्वास्थ्य की स्थिति को बेहतर तरीके से समझने की ज़रुरत है। अगर आपको किसी प्रकार की कोई भी एलर्जी या संक्रमण का इतिहास रहा है, तो इस बात का विशेष ध्यान में रखें ।
स्वस्थ आहार को अपनी जीवन में लाए। शरीर को एक संतुलित पोषण की ज़रुरत होती है इसके लिए आप स्वस्थ आहार में फल और सब्जियों को शामिल करें क्योंकि इसमें एंटीऑक्सिडेंट मौजूद होते हैं, जो कि व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। ऐसे खाद्य पदार्थों से बचे जो एलर्जिक प्रतिक्रियाएं पैदा कर सकते हैं, जैसे कि कुछ सी फ़ूड या नट्स आदि।
व्यायाम स्वस्थ रहने के लिए एक महत्वपूर्ण क्रिया है। नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि करने से शरीर में रक्त संचार बेहतर तरीके से होता है और व्यक्ति को तनाव कम होता है।
धूम्रपान और शराब के सेवन को कम करें या तो बंद कर दें, ऐसा इसलिए क्योंकि यह व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता हैं।
व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की ज़रुरत है क्योंकि योग और मेडिटेशन करने से व्यक्ति शांत रहता है साथ ही मनोबल भी बढ़ता है।
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सफ़ेद रक्त कोशिकाओं का काम शरीर को बिमारियों से बचाने व रक्षा करने का है। लेकिन जब उनकी मात्रा बढ़ने लग जाती है, तो बहुत सारी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने लग जाती है, जिससे व्यक्ति को परेशानी का सामना करना पड़ता है जिसमें इओसिनोफिलिया की समस्या शामिल है। जब भी इओसिनोफिलिया के लक्षण का अनुभव हो, तुरंत ही डॉक्टर से परामर्श लें और इलाज शुरू करें।
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