आपने सुना होगा कि हर व्यक्ति का एक रक्त समूह होता है और उसे जानने के लिए रक्त परीक्षण किया जाता है। किसी व्यक्ति का रक्त समूह जानने के लिए एक लोकप्रिय परीक्षण को रक्त समूह परीक्षण कहा जाता है, जिसे रक्त टाइपिंग भी कहा जाता है। हमारी लाल रक्त कोशिकाओं में विशिष्ट एंटीजनों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर, चार मुख्य प्रकार के रक्त समूह निर्धारित किए जाते हैं: रक्त समूह A, रक्त समूह B, रक्त समूह AB और रक्त समूह O। यदि किसी व्यक्ति को अपना रक्त समूह पता है, तो सुरक्षित रूप से रक्त आधान (blood transfusion) देना और प्राप्त करना आसान होगा।
आधान के दौरान, रक्त समूह परीक्षण करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संभावित घातक प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं (Potentially Fatal Adverse Reactions) को रोकने में मदद करता है। रक्त समूह परीक्षण प्रभावी प्रत्यारोपण सुनिश्चित करके अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति की संभावना को कम करता है। नवजात शिशु में हीमोलिटिक विकारों के जोखिम का पता लगाने के लिए, गर्भावस्था के दौरान महिला में रक्त समूह परीक्षण भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
हर व्यक्ति को अपने ब्लड ग्रुप के बारे में का पता होना चाहिए, ऐसा इसलिए जरूरी है ताकि अलग ब्लड ग्रुप के इंसान को न हमारा ब्लड जाए न ही हमें किसी एनी ब्लड ग्रुप के व्यक्ति का ब्लड चढ़ाया जाए। ऐसा होने से बहुत ही खतरनाक ब्लड रिएक्शन होने की संभावना बन सकती है।
अंग प्रत्यारोपण के दौरान ब्लड ग्रुप जानना भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि प्राप्तकर्ता का ब्लड ग्रुप असंगत है, तो अंग अस्वीकृति की संभावना 100% है।
गर्भावस्था के दौरान, रक्त समूह परीक्षण से यह पता लगाया जा सकता है कि माँ और भ्रूण Rh के अनुकूल हैं या नहीं। इससे नवजात शिशुओं में रक्तसंचार संबंधी विकारों को रोकने में मदद मिलती है और स्वस्थ गर्भावस्था सुनिश्चित होती है।
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अगर किसी को ब्लड ग्रुप टेस्ट करवाना होगा तो उसे किसी भी तरह के उपवास रखने की ज़रूरत नहीं ,न ही किसी भी तरह की कोई खास तैयारी करने की ज़रूरत नहीं होती है।
अगर आपको पहले रक्त आधान (blood transfusion) हो चुका है या आप गर्भवती महिला हैं, तो अपने डॉक्टर को इस बारे में ज़रूर बताए, ऐसा इसलिए क्योंकि यह आपके परिणामों पर असर डाल सकता है।
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आइए समझते हैं ब्लड ग्रुप तेत्स के दौरान क्या और कैसे होता है?
सबसे पहले, एक लैब टेक्नीशियन मरीज़ की बांह पर एक इलास्टिक बैंड बाँधता है और नस को हाइलाइट करता है। फिर, जहाँ से खून लिया जाना है, उस जगह को एंटीसेप्टिक से साफ़ करने के बाद, सुई के ज़रिए खून इकट्ठा किया जाता है और एक ट्यूब में सैंपल लिया जाता है। फिर इस सैंपल को लैब में भेज दिया जाता है।
इस प्रक्रिया में केवल 5 से 10 मिनट लगते हैं और परिणाम 1 दिन यानी 12 घंटे के भीतर आ जाता है। इस परीक्षण के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं है, बस डॉक्टर द्वारा दिए गए कुछ विशेष निर्देशों को ध्यान से सुनें और समझें।
कुछ मामलों में टेस्ट के दौरान सुई नस में जाते हुए दर्द या हल्की चुभन से महसूस होगा लेकिन घबराने वाली बात नहीं है क्योंकि यह जल्दी ही ठीक भी हो जाता है।
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रक्त समूह चार प्रकार के होते हैं:-
इस रक्त समूह में रेड ब्लड सेल्स की सतह पर A एंटीजन और प्लाज्मा में B एंटीबॉडी होते हैं।
इस रक्त समूह में रेड ब्लड सेल्स की सतह पर B एंटीजन और प्लाज्मा में A एंटीबॉडी होते हैं।
इस रक्त समूह में रेड ब्लड सेल्सकी सतह पर A और B दोनों एंटीजन होते हैं। इस प्रकार के रक्त समूह को सार्वभौमिक प्राप्तकर्ता माना जाता है।
इस रक्त समूह में रेड ब्लड सेल्स की सतह पर कोई एंटीजन नहीं होता और प्लाज्मा में A और B दोनों एंटीबॉडी होते हैं। यह यूनिवर्सल दाता होते हैं।
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इस प्रकार की रेड ब्लड सेल्स की सतह पर Rh एंटीजन होता है।
इस प्रकार की रेड ब्लड सेल्स की सतह पर Rh एंटीजन नहीं होता है।
इस एंटीजन (Rh कारक) की उपस्थिति या फिर अनुपस्थिति के आधार पर, चार ब्लड ग्रुप को अन्य आठ अलग-अलग ब्लड ग्रुप में वर्गीकृत कर दिया जाता है:-
A सकारात्मक - Rh+ की उपस्थिति
A नकारात्मक : Rh- की उपस्थिति
B सकारात्मक : Rh+ की उपस्थिति
B नकारात्मक : Rh- की उपस्थिति
AB सकारात्मक : Rh+ की उपस्थिति
AB नकारात्मक : Rh- की उपस्थिति
O सकारात्मक : Rh+ की उपस्थिति
O नकारात्मक : Rh- की उपस्थिति
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अगर किसी व्यक्ति को असंगत खून( incompatible blood) दिया जाता है, तो उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली उस खून को विदेशी मानकर अस्वीकार कर देती है और प्रतिक्रियास्वरूप ब्लड सेल्स आपस में चिपक सकती हैं, जो कि घातक हो सकता है। इसलिए, यह टेस्ट एक सुरक्षित प्रक्रिया है जो जीवन बचाने में मदद करती है।
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रक्त समूह परीक्षण हमेशा दान किए गए रक्त पर किया जाता है ताकि उसे सही व्यक्ति को दिया जा सके। रक्त समूह परीक्षण तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को रक्त आधान की आवश्यकता होती है। कुछ स्थितियों में रक्त समूह परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है:
गंभीर रक्ताल्पता
सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया जैसी स्थितियाँ
चोट लगना
सर्जरी के दौरान और बाद में रक्तस्राव
गंभीर रक्ताल्पता
कैंसर
कीमोथेरेपी के प्रभाव
रक्तस्राव संबंधी विकार
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इसके अलावा, जब कोई महिला जब गर्भवती होती है, तो उसका आरएच फैक्टर जानने के लिए ब्लड ग्रुप टेस्ट करवाया जाता है। अगर माँ का आरएच फैक्टर नेगेटिव निकलता है, तो नवजात शिशु पर भी इस टेस्ट को किया जाता है ताकि पता लगाया जा सके कि माँ को आरएच इम्यून ग्लोब्युलिन देने की ज़रूरत है या नहीं।
जब किसी व्यक्ति का अंग प्रत्यारोपण करना होता है, तो उस प्रक्रिया का पहला चरण ब्लड ग्रुप टेस्ट ही होता है। इसमें यह निर्धारित करते हैं की कि दाता के टिश्यू, अस्थि मज्जा (bone marrow) और अन्य अंग प्राप्तकर्ता के साथ संगत (compatible) हैं या नहीं।
जब आपके शरीर के किसी अंग को प्रतिस्थापित (transplant) करने की आवश्यकता होती है या जब आप अपने शरीर का कोई अंग दान करना चाहते हैं, तब भी आपको ब्लड ग्रुप टेस्ट करवाना आवश्यक हो जाता है।
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ब्लड ग्रुप टेस्ट के लिए व्यक्ति के शरीर से खून का सैंपल निकालना आवश्यक होता है। खून निकालने से जुड़े कुछ छोटे-मोटे जोखिम हो सकते हैं:-
त्वचा के नीचे रक्त का जमाव (जिसे हेमेटोमा कहा जाता है),
बेहोशी या चक्कर आना,
सुई लगने वाली जगह पर संक्रमण हो जाना,
अत्यधिक रक्तस्राव
ब्लड ग्रुप टेस्ट के साथ-साथ फुल बॉडी चेकअप भी क्यों जरूरी है, यहां जानें।
हर व्यक्ति को अपना ब्लड ग्रुप पता होना चाहिए जिससे उसे रक्त आधान (blood transfusion) या कभी लेते समय आसानी होगी. यह टेस्ट बहुत सरल है, इसको आप किसी भी नजदीकी लैब पर जाकर करवा सकते हैं। मेटाबॉलिक डिसऑर्डर में कई बार ब्लड टेस्ट की अहम भूमिका होती है, इसके बारे में पढ़ें।
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