माता-पिता को हमेशा ही अपने बच्चों का खान-पान की चिंता रहती है क्योंकि बच्चें कुछ खाते हैं और बहुत कुछ नहीं खाते है। जब शिशु 6 महीने के बाद सॉलिड खाना खाना शुरू कर देता है, तब ज्यादातर माता-पिता को पता नहीं होता है कि उस समय किस चीज से बच्चे को एलर्जी होगी और कौन से खाद्य पदार्थ खाने के कारण उन्हें फूड इंटॉलरेंस की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। अक्सर जो लोग नए-नए माता-पिता बने होते हैं उन्हें फूड एलर्जी और फूड इंटॉलरेंस का अंतर नहीं पता होता है वह दोनों को एक ही समझते हैं। इस वजह से बच्चों की सेहत से जुड़ी बड़ी गलती कर बैठते हैं। आइए इस ब्लॉग के जरिए समझते हैं कि इनमें अंतर क्या है आर शिशु को आमतौर पर किस फूड से एलर्जी हो सकती है।
प्रतिरक्षा प्राणली की एक प्रतिक्रिया को फूड एलर्जी कहते हैं, जिसमें बच्चे के शरीर में कुछ विशेष प्रकार के खाद्य पदार्थों के प्रति अपना एक रिएक्शन देता है। यह समस्या आम से गंभीर तक पहुँच सकती है। आइए जानते हैं कुछ फूड एलर्जी के लक्षण :-
त्वचा पर खुजली होना
लाल चकत्ते या रैशेज दिखाई देना
सांस लेने में परेशानी होना
दस्त या डायरिया की समस्या
फूड एलर्जी वैसे स्तनपान करने वाले शिशुओं और कुछ समय के बाद सॉलिड फूड खाना शुरू करने वाले बच्चों में देखने को मिल सकती है। फूड एलर्जी की समस्या थोड़ा सा कुछ खाने के बाद भी हो सकती है। फूड एलर्जी वैसे सामान्य रूप से मूंगफली, सोया, अंडा, दूध और नट्स जैसी चीज़े खाने के बाद देखने के बाद मिल सकती है।
शिशु रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि फूड इंटॉलरेंस एक पाचन तंत्र से संबंधी समस्या है। जिसमें शरीर किसी विशेष खाद्य पदार्थ को ठीक तरह से पचा न पाने के कारण यह समस्या होती है। वैसे तो आमतौर पर फूड इंटॉलरेंस गंभीर नहीं होता लेकिन बच्चों को आंतरिक तौर जरूर परेशान कर सकता है।
फूड एलर्जी से जुड़ी समस्याओं को समझने के लिए Food Intolerances in Hindi पर उपलब्ध जानकारी आपको एलर्जी और इंटोलरेंस के बीच का अंतर समझने में मदद करेगी।
पेट फूलना
गैस बनना (फूड एलर्जी और इंटोलरेंस पेट में गैस बनने के कारण और घरेलू नुस्खे जानना लाभदायक हो सकता है।)
पेट में दर्द
दस्त की समस्या
कब्ज की समस्या
सिरदर्द या थकान
अगर बच्चे को बार-बार सूजन या बुखार की शिकायत रहती है, तो CRP टेस्ट क्या है यह जानना जरूरी है क्योंकि यह शरीर में सूजन का संकेत दे सकता है।
वैसे तो फूड इंटॉलरेंस की समस्या ज्यादातर बड़े बच्चों और वयस्कों में ही देखने को मिलती है। इसमें गेहूं, जौ और राई में पाए जाने वाले प्रोटीन को पचाने में दिककते आ सकती है।
फूड एलर्जी में कोई भी खाद्य पदार्थ खाने के बाद बच्चे में तेजी से लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे कि सांस लेने में दिक्कत होने लगती है या फिर शरीर में सूजन या खुजली होने लगती है। वहीं, फूड इंटॉलरेंस में किसी खाद्य पदार्थ खाने के बाद बच्चों में लक्षण धीरे-धीरे उभरकर के दिखाई देंगे जैसे कि पेट में दर्द या गैस बनना आदि।
अगर आपका बच्चा बार-बार सर्दी या खांसी से परेशान रहता है, तो ये सर्दी-खांसी से बचने के घरेलू नुस्खे इम्यूनिटी बढ़ाकर एलर्जी से भी बचाव कर सकते हैं।
अगर आपको किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी है तो बच्चे को भी वह न दें। बाकि अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से परामर्श लेकर इस विशेष को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। अगर फूड एलर्जी है तो डॉक्टर द्वारा दी गई दवाई को हमेशा साथ रखें। पाचन में सुधार लाने के लिए एंजाइम सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
गाय के दूध से शिशुओं में सबसे आमतौर पर फूड एलर्जी देखने को मिलती है, जो नवजात शिशु से लेकर 1 साल तक की आयु वाले बच्चों में यह समस्या नज़र आ सकती है। यह फूड एलर्जी तभी होती है, जब शिशु का शरीर गाय के दूध में मौजूद प्रोटीन को सही तरह से पहचान नहीं पता या फिर पहचानने में गलती कर बैठता है। इसी वजह से सेहत पर असर देखने को मिलता है यह हानिकारक ही समझ जाता है। गाय के दूध से एलर्जी होने पर बच्चों में दस्त, कभी उल्टी, पेट में गैस, स्किन पर रैशेज, एक्जिमा, सांस लेने में समस्या और बार-बार रोना यानी कोलिक की समस्या लक्षण के तौर पर दिखाई भी सकती है। गाय के दूध से एलर्जी होने पर बच्चे के लिए पूरी तरह से इस दूध के इस्तेमाल से बचें। आप चाहे तो इसके साथ ही डॉक्टर की सलाह पर फॉर्मूला या सोया फॉर्मूला मिल्क देने पर विचार कर सकती है। शिशु के पोषण और स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा जरूरी है, और यदि कैल्शियम की कमी के लक्षण नजर आएं तो तुरंत कदम उठाना चाहिए।
अंडे की सफेद भाग में मौजूद प्रोटीन जैसे ओवलब्यूमिन और ओवोम्यूकोइड कहते हैं। शिशुओं को उससे एलर्जी हो सकती है। यह एलर्जी 6 से 12 महीनों वाले शिशुओं में नज़र आ सकती है। जब उन्हें सॉलिड फूड देना शुरू करते हैं तब यह समस्या देखने को मिल सकती है। अंडे से एलर्जी होने के कारण शिशु के स्किन पर रैशेज, पित्ती, कही कहीं सूजन, उल्टी या दस्त, खांसी या सांस लेने में दिक्कत आदि जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसलिए, जब आपके शिशु को अंडे से एलर्जी हो, तो आप उसे अंडा या उससे बने वाले फूड्स खिलाने से बचें।
कुछ बच्चों को मूंगफली से एलर्जी हो सकती है, जो कई बार यह एनाफाइलेक्सिस (anaphylaxis) जैसी गंभीर समस्या का भी रूप ले सकती है। मूंगफली एक नॉर्मल स्नैक के तौर पर अक्सर लोग खाते हैं, लेकिन शिशुओं एवं बड़े लोगों में भी सेहत के लिए एलर्जी होने पर यह खतरनाक भी बन सकती है। मूंगफली से एलर्जी होने पर शिशुओं में तुरंत ही रैशेज, सूजन, सांस लेने में दिक्कत, उल्टी या दस्त, खांसी आदि के साथ गंभीर मामलों में बेहोश होने जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। शिशुओं में मूंगफली या उससे बनने वाले खाद्य पदार्थों के कारण दिक्कत हो सकती है इसलिए अपने शिशु को पीनट खिलाने से बचें।
शिशुओं को देने वाले फॉर्मूला मिल्क और कई प्रोसेस्ड फूड्स में सोया का इस्तेमाल किया जाता है। देख गया है कि जिन शिशु को गाय के दूध से एलर्जी होती है, उन्हें सोया के प्रोडक्ट्स से भी एलर्जी होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में अगर उन्हें सोया से भी एलर्जी होती है तो दस्त या पेट में दर्द, स्किन पर रैशेज और सांस लेने में मुश्किल आई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। अगर शिशु को सोया से एलर्जी है तो आप उसे सोया से बने फूड्स और फॉर्मूला देने से बचें।
जब बच्चा सॉलिड फूड लेना शुरू कर देता है उसके बाद अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को दलिया, रोटी या सेरेलक आदि जैसे गेंहू बेस्ड फूड्स देना शुरू कर देते हैं। आप इस समय अपने बच्चे में गेहूं से होने वाली एलर्जी की पहचान कर पाएंगे। शिशुओं में गेहूं से एलर्जी होने की वजह से पेट में मरोड़, गैस, त्वचा पर दाने या खुजली साथ ही सांस लेने के दौरान घरघराहट आदि जैसी आवाज आने के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। ऐसे में आप अपने बच्चे को गेहूं और उससे बनने वाले प्रोडक्ट्स को देने से बचें और उन्हें ग्लूटेन-फ्री फूड्स ही खिलाएं।
फूड एलर्जी और फूड इंटॉलरेंस में अंतर समझे क्योंकि दोनों ही स्थिति एक दूसरे से भिन्न होती है और अलग-लग तरह से ही स्थिति को संभाला जाता है। मौसमी बदलावों के दौरान एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है, ऐसे में इन्फ्लूएंजा और मौसमी फ्लू से बचाव के उपाय जानकर आप अपने बच्चे को सुरक्षित रख सकते हैं।
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